जीवन क्या है? इसके बारे में ओशो का कहना है कि इसका उत्तर तभी दिया जा सकता है, जब जीवन के अतिरिक्त कुछ और भी हो। जीवन ही है, उसके अतिरिक्त कुछ और नहीं है। हम उत्तर किसी और के संदर्भ में दे सकते थे, लेकिन कोई और है नहीं, जीवन ही जीवन है। तो न तो कुछ लक्ष्य हो सकता है जीवन का, न कोई कारण हो सकता जीवन का। कारण भी जीवन है और लक्ष्य भी जीवन है। तो फिर मृत्यु क्या है? ओशो के इस जवाब से सवाल उठता है। मृत्यु जीवन की समाप्ति है या फिर एक नए जीवन की शुरुआत का एक पड़ाव? इसका जवाब द्वंद्वात्मक सिद्धांत के आधार पर दिया जा सकता है। जीवन है तो मृत्यु है। दोनों एक दूसरे के सापेक्ष हैं। ठीक वैसे ही जैसे प्रकाश है, तो अंधेरा भी है। अंधेरे के बिना प्रकाश का कोई अर्थ नहीं है। प्रकृति की ही ऊर्जा और तत्वों के संयोजन से शरीर बना और शरीर बनते ही जीवन की शुरुआत हुई। इस जीवन में सब कुछ अनिश्चित है।
यहां ओशो की बात सच साबित होती है कि जीवन के अतिरिक्त कुछ और है ही नहीं। मृत्यु तो प्रकृति के एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ के रूप में रूपांतरण है। शरीर की ऊर्जा जब प्रकृति में विलीन हो जाती है, तब कहा जाता है कि फलां प्राणी की मृत्यु हो गई। मृत्यु का कोई क्षण निर्धारित नहीं होता है। वह अनायास कभी और कहीं भी आ जाती है। कोई यह नहीं तय कर सकता है कि उसकी मौत फलां समय पर होगी। जब हम अपने मित्र से, मां-बाप, भाई-बहन, बीवी-बच्चों से गपशप कर रहे होते हैं, उनसे बातचीत कर रहे होते हैं, तब मन में भले ही आश्वस्त हों कि कुछ क्षण बाद भी हम मिलेंगे। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? जीवन एक आशावादी अवधारणा है।
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हम अपने जीवन में हमेशा यही सोचकर चलते हैं कि हमें सौ साल जीना है। हमें यह लक्ष्य हासिल करना है, करोड़ों रुपये कमाना है, मकान बनाना है, बेटा-बेटी को पढ़ाना लिखाना है। यही जीवन है। जीवन कभी आशा का दामन नहीं छोड़ता है। जिस व्यक्ति को कोई असाध्य रोग हो जाता है, तो वह जानता है कि मौत निश्चित है, लेकिन वह भी और जीने की प्रत्याशा का पीछा नहीं छोड़ता है। जो स्वस्थ है, उसे भी मालूम है कि एक दिन मौत निश्चित है, लेकिन वह मौत से बहुत दूर भाग जाना चाहता है। न जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो, यह कोई नहीं जानता है।
जब हम अपने बच्चे को प्यार से दुलरा रहे होते हैं, तो कभी नहीं सोचते हैं कि क्या पता यह आखिरी बार हो, लेकिन हो सकता है। लेकिन कई बार यह सच साबित हो जाता है। यही अनिश्चितता ही जीवन है। युधिष्ठिर से यक्ष ने यही पूछा था कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने यही जवाब दिया था कि सभी जानते हैं कि एक दिन सबकी मृत्यु होनी है, लेकिन आचरण ऐसा करते हैं मानो उन्हें हमेशा रहना है। वह अमर होकर आए हैं। अमरता एक ऐसी कल्पना है जो सुखद है, लेकिन वास्तविक नहीं। यही वजह है कि जब तक जीवन है, जीवन को जीवन की तरह जिया जाए। एक सराय में ठहरे हुए किसी यात्री की तरह।
-संजय मग्गू
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