आज से सावन शुरू हो रहा है। सावन में नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि समुद्र मंथन से उपजे हलाहल को भगवान शंकर ने अपने कंठ के नीचे उतार लिया था, इसी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का शांत स्वरूप माना जाता है। कुछ दशक पहले गांवों, शहरों, खेत-खलिहान, बागों में आम तौर पर नीलकंठ पक्षी दिख जाता था। जिसको सावन या सावन के किसी सोमवार में दिख जाता था, वह अपने को सौभाग्यशाली मानता था। लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वह कोई विलुप्त पक्षी था। जो लोग खेती-किसानी या ग्राम्य जीवन से जुड़े रहते थे, उन्हें साल में दो-चार बार कहीं न कहीं नीलकंठ दिख ही जाता था। लेकिन अब गांवों में भी नीलकंठ के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। नीलकंठ ही नहीं, अब तो कई ऐसे पक्षी हैं जो हमारे घर, आंगन, छत या खेत-खलिहान में बहुतायत में दिखती थीं, हमारे जीवन का हिस्सा थीं।
दादी-नानी की कहानियों में उनका अहम रोल था, वे सब की सब गायब होती जा रही हैं या गायब हो गई हैं। पहले शहरों में भी गौरैया झुंड की झुंड आंगन में उतरकर चहचहाती थीं, एकदम कनफोड़ (अपनी आवाज से कान फाड़ देना) मचा देती थीं, लेकिन अब वे भी गायब हो गई हैं। फुदकती गौरैया, बाग-बगीचों में नाचता मोर, प्रकृति में सफाई कर्मी की जिम्मेदारी निभाते गिद्ध, रात में किसी की आहट पाकर कच्च कू की आवाज करते उल्लू, मधुर आवाज से मन मोह लेने वाली कोयल, मैना जैसे न जाने पक्षियों की कितनी प्रजातियां हमारे जीवन से कब लापता हो गईं, हमें पता ही नहीं चला। पता भी कैसे चलता? खेत, खलिहान, बाग-बगीचों को उजाड़कर हम अपना घर बनाने में व्यस्त रहे, अपना घर नष्ट हो जाने से रूठे पक्षियों ने यह दुनिया ही छोड़ दी।
नतीजा यह हुआ कि प्रकृति में असंतुलन पैदा हुआ और उसी का नतीजा है कि हम ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं। जैव विविधता नष्ट होने से हमारे लिए परेशानी बढ़ी ही है। हम पिछले कई दशकों से वही गलती करते आ रहे हैं, जो आधुनिक चीन के निर्माता माओत्से तुंग ने किया था। उन्होंने सन 1958 में खटमल, मच्छर, मक्खी और चिड़िया मारने का फरमान जारी किया। माओ का मानना था कि चिड़िया चीन के लाखों इंसानों का अनाज खा जाती हैं। नतीजा यह हुआ कि चीन की सारी लाखों करोड़ों जनता थाली, टीन, ढोल आदि को लेकर दिन रात चिड़ियों को उड़ाते रहे।
नतीजा यह हुआ कि तीन-चार दिन तक बिना खाए-पिए लगातार उड़ती चिड़िया गिरकर मरने लगीं। उसके बाद चीन से चिड़िया का खात्मा हो गया। एक साल बाद ही इसके दुष्परिणाम भी सामने आए। जो चिड़िया फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को बड़े होने से पहले ही चट कर जाती थीं। चिड़िया के न होने से चीन की फसलों पर कीड़े-मकोड़ों ने धावा बोल दिया। उस साल अनाज की कमी से लाखों लोग भूख से मर गए। हमने भी यदि ध्यान नहीं दिया, तो इसके दुष्परिणाम भुगतने ही होंगे।
-संजय मग्गू