महाकुंभ के भव्य (mahakumbh 2025:)आयोजन में पीपे के पुलों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। विराट आयोजन में संगम क्षेत्र और अखाड़ा क्षेत्र के बीच पीपे के पुल अद्भुत सेतु का काम कर रहे हैं। ढाई हजार साल पुरानी फारसी तकनीक से प्रेरित पीपे के पुलों के निर्माण में 1,000 से अधिक कारीगरों ने एक वर्ष से ज्यादा समय तक प्रतिदिन कम से कम 10 घंटे काम किया। 2,200 से अधिक काले तैरते लोहे के कैप्सूल जैसे पीपों का उपयोग किया गया, जिनमें प्रत्येक का वजन पांच टन है और यह उतना ही भार सहन करने की क्षमता रखते हैं। इन पुलों का उद्देश्य महाकुंभ के विशाल आयोजन में वाहनों, तीर्थयात्रियों, साधुओं और श्रमिकों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना है।
पीपे के (mahakumbh 2025:)पुलों का इतिहास 480 ईसा पूर्व से जुड़ा हुआ है, जब फारसी राजा ज़ेरेक्सेस प्रथम ने यूनान पर आक्रमण करते समय इन पुलों का निर्माण किया था। चीन में भी 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में झोऊ राजवंश द्वारा इनका उपयोग किया गया था। भारत में इस तरह का पहला पुल 1874 में हावड़ा और कोलकाता के बीच हुगली नदी पर बना था, जिसे ब्रिटेन के इंजीनियर सर ब्रैडफोर्ड लेस्ली ने डिजाइन किया था। हालांकि, यह पुल एक चक्रवात के कारण क्षतिग्रस्त हो गया और 1943 में इसे ध्वस्त कर दिया गया, जिसके स्थान पर रवींद्र सेतु, जिसे अब हावड़ा ब्रिज के नाम से जाना जाता है, का निर्माण हुआ।
महाकुंभ नगर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि ये पुल संगम और अखाड़ा क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ये पुल महाकुंभ का अभिन्न अंग हैं, जो विशाल भीड़ की आवाजाही के लिए अत्यंत जरूरी हैं। इनकी निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है ताकि चौबीसों घंटे भक्तों की सुचारू आवाजाही और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए हमने हर पुल पर सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं और एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र से फुटेज की लगातार निगरानी की जाती है।’’