स्वामी महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व बिहार के विदेह राज्य में राजा सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के यहां हुआ था। वह बचपन से ही बहुत शांत स्वभाव केथे। उनके चेहरे पर हमेशा प्रसन्नता झलकती रहती थी। उनका बचपन का नाम वर्धमान था। यही वर्धमान आगे चलकर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर स्वामी महावीर बने। उन्होंने मानव समाज को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। एक बार की बात है। स्वामी महावीर कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक बहुत बड़ा घना जंगल पड़ा। जब वह उस वन के किनारे पहुंचे, तो उन्हें लोगों ने बताया कि आपके लिए वन में प्रवेश करना खतरनाक हो सकता है। वन में चंडकौशिक नाम का एक सांप रहता है।
वह वन में जाने वाले प्रत्येक जीव को डस लेता है। वह इतना खतरनाक है कि जिसको वह देख लेता है, उसकी मौत हो जाती है। गांव वालों के समझाने पर भी स्वामी महावीर नहीं माने और जंगल में प्रवेश करने लगे। जैसे-जैसे वह वन के भीतर घुसते गए, हरियाली कम होती गई। एक जगह ऐसी भी आई जहां वनस्पतियों का नामोनिशान तक नहीं था। उन्होंने वहीं पर बैठकर ध्यान करने की सोची।
उसी समय चंडकौशिश को इस बात का पता चल गया कि कोई वन क्षेत्र में घुसा है। वह फुफकारता हुआ अपनी बिल से निकला और महावीर स्वामी को देखकर सोचने लगा कि यह कैसा इंसान है जो मुझसे डर नहीं रहा है। उसने क्रोध में अपना विष महावीर पर छोड़ा, लेकिन महावीर ध्यान मग्न रहे। क्रोध में चंडकौशिक ने उनके अंगूठे में डस लिया। उसने देखा कि वहां से खून की जगह दूध निकल रहा है। तब महावीर का ध्यान भंग हुआ। उन्होंने चंडकौशिक को प्रेम और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। उनकी शांत और मधुर वाणी सुनकर उसका क्रोध और अहंकार दूर हो गया।
-अशोक मिश्र