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कृषि एवं पशुपालन में विशेष पहचान रखने वाला सरहदी गांव मंगनाड

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हर एक व्यक्ति या स्थान अपनी विशेष पहचान रखता है। अगर हम बात करें सरहद पर बसे मंगनाड गांव की, तो यह कृषि और पशुपालन के लिए धीरे धीरे अपनी पहचान बनाता जा रहा है। केंद्र प्रशासित राज्य जम्मू कश्मीर के जिला पुंछ से करीब 6 किमी की दूरी पर बसा यह गांव, कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में तेजी से अपनी पहचान बनाता जा रहा है। दरअसल, बीते कई वर्षों की अगर बात की जाए तो यह गांव, पशुपालन के मामले में एक विशेष स्थान बनाए हुए है। ऐसा कोई घर नहीं है, जहां आपको माल मवेशी नहीं मिलेंगे।

हालांकि ऐसा नहीं है कि यहां के लोग पूरी तरह पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं। कई लोग सरकारी कर्मचारी होते हुए भी पशुपालन और कृषि में बेहद दिलचस्पी रखते हैं। यही कारण है कि आज यह गांव न केवल अपने आसपास बल्कि पूरे पुंछ में दूध और सब्जी उगाने के लिए जाना जाने लगा है। हर सुबह कई लीटर दूध, गाड़ियों में भरकर शहर पहुंचाया जाता है।

शहर के लोगों का मानना है कि यदि किसी कारणवश मंगनाड से दूध आना बंद हो जाए तो हमारे बच्चों के लिए मुसीबत आ जाएगी। यहां से दूध की सप्लाई का सिलसिला तो वर्षों पुराना है। लेकिन बीते 8-10 वर्षों में इस गांव ने सब्जी उत्पादन में भी अपना प्रमुख स्थान बना लिया है। इसके लिए गांव वालों ने अच्छी खासी मेहनत की है। जिसका नतीजा यह हुआ कि आज यह गांव दूध के साथ-साथ सब्जियों उगाने और उन्हें बेचने के मामले में भी एक विशेष पहचान रखने लगा है।

आज इस गांव में चाहे किसी का निजी व्यवसाय हो, चाहे कोई सरकारी कर्मचारी हो, चाहे वह कुछ भी काम करता हो, परंतु वह सब्जी जरूर लगाएगा। लोगों का कृषि की तरफ बढ़ता हुआ रुझान को देखते हुए कृषि विभाग ने भी लोगों की मदद की है। चाहे वह छोटा ट्रैक्टर हो, अच्छे बीज हों, कृषि के छोटे-छोटे कैंप हों, या पानी के लिए टैंक की व्यवस्था करनी हो। स्थानीय लोगों ने इसके लिए मिलकर मेहनत की और अपने गांव को एक पहचान दिला दी। चूंकि जम्मू कश्मीर पूरी तरह से एक पहाड़ी इलाका है। यहां कोई मैदानी खेत नहीं हैं कि हर काम सरलता से हो जाए।

इस पहाड़ी क्षेत्र में भी सब्जी की पैदावार आज इस मुकाम पर है कि गांव से सुबह बड़ी मात्रा में सब्जियां शहर की मंडियों में पहुंचाई जाती है। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब कभी शहर में हड़ताल होती है या चक्का जाम होता है तो शहर के लोग दूध और सब्जी के लिए स्कूटर, मोटरसाइकिल से इस गांव में पहुंच जाते हैं। मौसम और समय के हिसाब से पूरे 12 महीने इस गांव में अलग-अलग तरह की सब्जियां उगाई जाती हैं।

गांव की रहने वाली 54 वर्षीय मूर्ति देवी कहती हैं कि पहले हम छह महीने में केवल एक सब्जी लगाते थे और फिर अगले छह महीने में दूसरी सब्जी उगाते थे। परंतु धीरे-धीरे हमें इतना अभ्यास हो गया कि अब हमने सब्जियों को चार कैटेगरी में बांट लिया है। अब हम मौसम देखते हैं कि किस मौसम में क्या चीज होगी उस हिसाब से हम लगभग एक साल में चार किस्म की सब्जियां उगा लेते हैं। जैसे जुलाई अगस्त और सितंबर में होने वाली सब्जियां करेला, भिंडी, लौकी, कद्दू, राजमा की फली, हरी मिर्च, खीरा आदि कई सब्जियां उगाते हैं।

अक्टूबर से लेकर दिसंबर जनवरी तक, गाजर, मूली, कडम, पालक आदि सब्जियां उगा लेते हैं। ऐसे ही गोभी, प्याज, आलू, मूली, शलगम इत्यादि सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। वह बताती हैं कि पूरे वर्ष यहां मौसम के हिसाब से सब्जियां मिल जाएंगी। घर का गुजारा करने के लिए हमने दूध के कारोबार को आगे बढ़ाना शुरू किया।

घर में पहले से मवेशी थे जिनका दूध केवल घर में ही इस्तेमाल किया जाता था। अब मैं दूध के कारोबार के साथ साथ अपनी छोटी से जमीन पर सब्जी उत्पादन का काम भी करता हूं। सोहनलाल कहते हैं कि मैंने देखा कि गांव वाले सभी प्रकार की सब्जियों का उत्पादन करते हैं सिवाए मशरूम के। इसके लिए मैंने कृषि विभाग से संपर्क किया और उनसे मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया की सभी जानकारियां प्राप्त की।

  • -भारती देवी
    (यह लेखिका के निजी विचार हैं।)
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