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पितृपक्ष का संदेश बुढ़ापे में अपने बुजुर्गों का ख्याल रखिए

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इन दिनों पितृपक्ष चल रहा है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष में ब्राह्मण, कौआ, गाय आदि को भोजन कराने से, तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलती है, उनकी आत्मा को शांति मिलती है, यह तो मैं नहीं जानता। लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि जिन्होंने अपने माता-पिता, भाई-बहन या निकट संबंधियों का जीते-जी ख्याल नहीं रखा, उन्हें दरबदर भटकने के लिए छोड़ दिया, उन्हें एक न एक दिन अपने पापों की सजा भुगतनी पड़ती है। और इसी जन्म में जिंदा रहते। हमारी सनातन संस्कृति में तीन तरह के ऋण गिनाए गए हैं। मातृ ऋण, पितृ ऋण और गुरु ऋण। कोई भी व्यक्ति इनमें से सिर्फ दो ऋणों से मुक्ति पा सकता है। यदि स्त्री है, तो वह अपने बच्चे को जन्म देकर मातृ ऋण और अपनी संतानों या दूसरे के बच्चों को शिक्षा दिलाकर गुरु ऋण से मुक्ति पा सकती है। पितृ ऋण तब भी उस पर बकाया रहता है।

ठीक यही स्थिति पुरुष की होती है, वह मातृ ऋण से मुक्ति नहीं पाता है। पितृ पक्ष वास्तव में मां-बाप, भाई-बहन, दादा-दादी को याद करके उनके द्वारा जीवन में किए गए एहसान के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर है। इन दिनों कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपने पिता, मां की निशानी खोज रहे हैं। जिंदा रहते अपने बुजुर्गों को घर में अकेले या वृद्धाश्रम में छोड़ आने वाले लोग परेशान हैं क्योंकि उनके पुजारी ने उन पर पितृदोष बता रखा है। उनकी परेशानी की वजह पितरों का नाराज होना बताया है। चलिए, मान लिया कि आप पितृ पक्ष को पाखंड मानते हैं, पितरों का तर्पण नहीं करना चाहते हैं। लेकिन इंसान होने के नाते आप अपने मां-बाप की जिंदा रहते तो सेवा-सुश्रुषा कर ही सकते हैं। यदि आपने अपने बुजुर्गों की उनके जिन्दा रहते खूब सेवा की है, उनकी जरूरतों का ख्याल रखा है,

उनका अपने बच्चे की तरह ख्याल रखा है, तो आप भले ही पितृ पक्ष के दौरान तर्पण न करें, कम से कम इस बात का अफसोस तो नहीं रहेगा कि हमने उनके जीते-जी उनका ख्याल नहीं रखा। जिन्दा रहते हुए दोनों जून खाने को तरसने वाले माता-पिता के मरने के बाद ब्राह्मणों को बड़े आदर के साथ विभिन्न तरह के पकवान बनाकर भोजन कराने, कौआ, गाय, कुत्ता आदि के लिए भोजन छोड़ने से क्या होगा? यदि आप ऐसा करते हैं तो पाखंडी हैं।

हमारे बुजुर्गों ने हमें पालते-पोसते समय सिर्फ यही अपेक्षा की होगी कि जब वे बूढ़े हो जाएंगे, तो उनकी देखभाल की जाएगी, उन्हें उचित सम्मान दिया जाएगा। जब वे बीमार पड़ेंगे, तो उन्हें दवाएं दी जाएंगी, उनकी सुख-सुविधा का ख्याल रखा जाएगा। यदि उन्होंने ऐसी अपेक्षा की थी तो क्या गुनाह किया था। उन्होंने अपनी सामर्थ्यभर आपको समाज में रहने लायक बनाया, पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाया, अर्थाभाव या किन्हीं परिस्थितियों में वे पढ़ा नहीं पाए, तो भी उन्होंने एक उम्र तक पालन-पोषण तो किया। उसके बदले में उन्होंने आपसे मांगा क्या? बुढ़ापे में थोड़ी सी देखभाल, बस।

-संजय मग्गू

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