प्रदेश सरकार के लाख प्रयासों के बाद भी नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। ठेकेदार निगम अधिकारियों के साथ मिली भगत कर विकास कार्यो में लापरवाही तो बरतते ही हैं, साथ ही घटिया निर्माण सामाग्री का भी इस्तेमाल किया जाता है। जिससे शहर के लोगों को विकास कार्यो का पूरा फायदा नहीं मिलता। अब निगम ठेकेदारों का एक नया कारनामा उजागर हुआ है। सड़क निर्माण अथवा इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाने के दौरान खोदी गई मिट्टी भी ठेकेदारों द्वारा बेच दी जाती है। इस बात का खुलासा उस समय हुआ जब एनएच दो एफ ब्लॉक में टाइल्स लगाने के दौरान खोदी गई मिट्टी को स्थानीय लोगों ने आसपास की सड़कों के गड्ढों में भरने के लिए कहा। लेकिन ठेकेदार ने साफ इनकार करते हुए मिट्टी को बंधवाड़ी भेजने की बात कही। इतना ही नहीं ठेकेदारों द्वारा अपने फायदे के लिए अतिक्रमण हटवाए बिना ही इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाई जाती है। ऐसे में टाइल्स बचने से ठेकेदारों को डबल मुनाफा होता है।
गड्ढे न भर कर बेच रहे मिट्टी
एनएच दो एफ ब्लॉक मेंनगर निगम द्वारा इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाने का काम किया जा रहा है। टाइल्स लगाने से पहले ठेकेदार द्वारा खोदाई भी करवाई जा रही है। इससे निकलने वाली मिट्टी को ठेकेदारों द्वारा ट्रेक्टर ट्रॉली में भरकर बेचा जा रहा है। जबकि एफ ब्लॉक के आसपास की कुछ सड़कों पर गहरे गड्ढे बने हुए हैं। जिसे देखते हुए निगरानी कमेटी के सदस्य आनंद कांत भाटिया ने मौके पर मौजूद ठेकेदार के कारिंदों को खोदी गई मिट्टी को सड़क के गड्ढों में भरने के लिए कहा था। लेकिन उन्होंने स्पष्ट मनाकर दिया और कहा कि यह मिट्टी वे बंधवाड़ी में भेजते हैं। मिट्टी गड्ढों में डलवाने के लिए उन्हें खर्च देना होगा। मौके पर काम देखने के लिए निगम का कोई अधिकारी नहीं था। ऐसे में आनंदकांत ने फोन किया। लेकिन संबंधित जेई ने फोन रिसीव नहीं किया।
अतिक्रमण हटाए बिना लगाते हैं टाइल्स
अतिक्रमण रोकने के लिए नगर निगम द्वारा सड़कों और गलियों में दोनों तरफ इंटरलॉकिंग टाइल्स लगवाई जाती है। ताकि लोग अतिक्रमण न कर सकें, साथ ही सड़के चौड़ी होने से जाम की समस्या का भी समाधान हो सके। लेकिन यह मंशा सिर्फ कागजों तक ही सीमित होकर रह जाती है। क्योंकि नगर निगम के ठेकेदार अपने मुनाफे के लिए अतिक्रमण हटवाने की जरूरत ही महसूस नहीं करते। वे अतिक्रमण यानी घरों के आगे लगी ग्रिल या रैम्प के आगे जितनी जगह बचती है, उसी में इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाकर चले जाते हैं। जबकि ठेका देने से पहले बनाए गए ऐस्टीमेट में टाइल्स लगाने के लिए पूरी जगह दर्शाई जाती है। काम के दौरान मौके पर निगम के संबंधित अधिकारी एवं कर्मचारी लापरवाही अथवा निजी स्वार्थ के कारण मौजूद नहीं रहते। जिसका फायदा ठेकेदारों द्वारा अनेक कामों में बाखूबी उठाया जाता है।
टाइल्स लगाने में घोटाले की आशंका
इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाने के काम में पहले भी नगर निगम के घोटाले उजागर हो चुके हैं। नगर निगम के उजागर हुए 200 करोड़ रुपये के घोटाले में एंटी करप्शन ब्यूरों द्वारा दर्ज की गई एफआइआर में भी वार्ड 11, 14, 15 और 16 में इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाने के काम का जिक्र है। जिसमें कहा है कि सतबीर ठेकेदार को इन वार्डो में टाइल्स लगाने के काम की टेंडर प्रक्रिया नियमानुसार नहीं हुई और ठेकेदार ने काम भी नहीं किया। ऐसे में अग्रिम राशि जब्त कर वर्क आॅर्डर रिजेक्ट करना चाहिए था। लेकिन निगम ने ऐसा नहीं किया। एनएच दो एफ में जहां टाइल्स लगाई जा रही है, वह वार्ड 11 में आता है। ऐसे में यहां भी इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाने के काम में घोटाला किये जाने की आशंका से किसी भी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मौके पर नहीं होते अधिकारी निगरानी कमेटी के सदस्य आनंद कांत भाटिया ने कहा कि विकास कार्यो के दौरान निगम के जिम्मेदार अधिकारी कभी भी मौजूद नहीं होते। ठेकेदार आधे अधूरे काम कर निगम से पूरा भुगतान ले लेते हैं। एफ ब्लॉक में ऐसे ही टाइल्स लगा रहे हैं। मौके जब अधिकारी मौजूद रहेंगे तभी पता चलेगा कि काम कितना ठीक हो रहा है और मिट्टी कहां जा रही है।
– राजेश दास