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जानवरों को मारकर भूख मिटाने को मजबूर नामीबिया

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दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया में इस साल भयंकर सूखा पड़ा है। गर्मी भी इतनी ज्यादा पड़ी कि पिछले सौ साल का रिकार्ड टूट गया। खेती सूख गई। अनाज उत्पादन काफी कम हुआ। अब हालत यह है कि देश की लगभग आधी आबादी यानी 14 लाख लोगों के पास खाना भी नहीं बचा है। सरकार जानवरों को मारकर उनका मांस मुहैया करा रही है। नागरिकों की भूख मिटाने के लिए वहां की सरकार ने 80 हाथियों सहित 733 जानवरों को मारने और उनका मांस अपने नागरिकों को उपलब्ध कराने का फैसला किया है। पिछले एक सप्ताह में 157 जानवरों को मारकर 57875 किलो मांस लोगों में बांटा जा चुका है। जिंबाब्वे, मलावी, जांबिया जैसे कई अफ्रीकी देशों में इमरजेंसी लागू कर दी गई है। सूखा पड़ने का कारण है जलवायु परिवर्तन। वैसे तो पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का असर अब दिखने लगा है। कहीं कम, तो कहीं ज्यादा। नामीबिया की हालत यह है कि भयंकर सूखे और भोजन नहीं मिलने के चलते हाथी, दरियाई घोड़े और एलैंड्स (हिरन प्रजाति का जानवर) सहित अन्य जानवर हिंसक हो रहे हैं। 

खाने-पीने की चीजों की भारी कमी होने की वजह से नामीबिया के जानवर भी परेशान हैं। हाथियों के मानव बस्तियों में उत्पाद मचाने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। पूरी जैव विविधा छिन्न-भिन्न होकर रह गई है। वैसे तो भारत भी जलवायु परिवर्तन से अछूता नहीं है, लेकिन जलवायु परिवर्तन को लेकर विकसित और विकासशील देश गंभीर नहीं हैं। कॉप यानी कान्फ्रेंस आफ पार्टीज की अब तक 28 बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन इस मुद्दे पर कुछ ऐसा निर्णय नहीं लिया गया जिससे ऐसा लगता कि जलवायु परिवर्तन को लेकर अमेरिका, रूस, चीन, जापान जैसे तमाम देश गंभीर हैं। फिलहाल अभी जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान का सबसे ज्यादा खामियाजा अफ्रीकी देश भुगत रहे हैं।

इन देशों में अनाज की कमी, बरसात का न होना, बेरोजगारी और महंगाई सबसे बड़ी समस्याएं हंै। यह समस्याएं मानव निर्मित यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था की देन हैं। विकास के मामले में सबसे ज्यादा पिछड़े अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्यान्न जैसी समस्याएं पिछले कई दशकों से हैं। इसका कारण यह है कि दक्षिण अफ्रीका के लगभग सारे देश अविकसित हैं। इन देशों पर धनी देश बस रौब जमाकर सारे कायदे-कानून का पालन करने का दबाव बनाते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अपने हिस्से का धन नहीं उपलब्ध कराते हैं।

यदि विकसित और अमीर देशों ने दक्षिण अफ्रीका और एशिया के कई अविकसित देशों को धन दिया होता तो शायद इतना अधिक कार्बन उत्सर्जन नहीं हुआ होता और धरती का तापमान इतना अधिक नहीं बढ़ा होता। चीन, अमेरिका, जापान जैसे देश सबसे ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन करते हैं, लेकिन कार्बन उत्सर्जन रोकने का प्रयास सबसे कम दिखाई देता है। भारत ने कई साल पहले से ही कार्बन उत्सर्जन को कम करने का प्रयास करना शुरू कर दिया था।

-संजय मग्गू

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