राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने राष्ट्रीय(ngt pollution:) राजधानी में ‘‘लगातार वायु प्रदूषण संकट’’ के संदर्भ में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। यह मामला उस अध्ययन पर आधारित है, जिसमें वायु प्रदूषण के कारणों का विश्लेषण किया गया था। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 27 नवंबर को जारी आदेश में कहा कि ऊर्जा एवं स्वच्छ वायु अनुसंधान केंद्र (सीआरईए) के हालिया अध्ययन से पता चला है कि क्षेत्र में ताप विद्युत संयंत्रों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण, पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से 16 गुना अधिक है।
पीठ (ngt pollution:)में न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल भी शामिल थे। पीठ ने यह भी बताया कि दिल्ली वर्तमान में लगातार वायु प्रदूषण संकट का सामना कर रही है, और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) हाल में खतरनाक स्तर 488 तक पहुंच चुका है। अध्ययन में यह भी बताया गया कि दिल्ली-एनसीआर में कोयले से चलने वाले ताप विद्युत संयंत्रों से हर साल 281 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) का उत्सर्जन होता है, जबकि पराली जलाने से यह उत्सर्जन 17.8 किलोटन के बराबर होता है।
एनजीटी ने कहा कि दिल्ली में मौसम की स्थिति भी प्रदूषण संकट को बढ़ा रही है और यह मामला वायु प्रदूषण नियंत्रण कानून और पर्यावरण संरक्षण कानून के उल्लंघन का संकेत देता है। इस संदर्भ में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के सदस्य सचिवों को पक्षकार बनाया गया है। एनजीटी ने कहा कि प्रतिवादियों को आगामी सुनवाई (19 मार्च) से कम से कम एक सप्ताह पहले हलफनामे के जरिए अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।