Friday, November 8, 2024
31.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiइंसान को अब भारी पड़ने लगा प्रकृति से खिलवाड़

इंसान को अब भारी पड़ने लगा प्रकृति से खिलवाड़

Google News
Google News

- Advertisement -

अगर यह कहा जाए कि गिद्धों की मौत की वजह से भारत में पांच साल में पाच लाख लोगों की मौत हो गई, तो जरूर आश्चर्यजनक लगेगा। हमारे देश में सन 1990 तक पांच करोड़ गिद्ध पाए जाते थे। पशुधन के मामले में भारत दुनिया का सबसे अमीर देश था। जब गांव या शहर में किसी पशु की मौत हो जाती थी, तो उसकी प्राकृतिक सफाई के लिए किसान या पशुपालक गिद्ध पर ही निर्भर रहते थे। गिद्ध एक ऐसा पक्षी है जो सड़े हुए मांस और शरीर के अन्य अवशेषों को खाकर साफ कर देता है। जब पशुओं की बीमारी में राहत देने वाली दवाओं में डाइक्लोफेनाक दवा का उपयोग करना शुरू किया, तो इस दवा से ठीक होने वाले जानवर की मौत पर इन्हें खाने वाले गिद्ध किडनी फेल्योर की वजह से मरने लगे। अब हालत यह हो गई है कि पांच करोड़ गिद्ध में से अब मुश्किल से एक या आधे फीसदी ही बचे हैं।

गिद्धों की बड़े पैमाने पर हुई मौत का नतीजा यह निकला कि अब किसी पशु की मौत होने पर कुत्ते उनका मांस खा लेते हैं, लेकिन सड़ गए मांस को वे वैसे ही छोड़ देते हैं। इस सड़े हुए मांस में कई रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, जो जल स्रोतों में पहुंचकर पीने के पानी में फैल जाते हैं जिससे मनुष्य बीमार हो जाता है। गिद्धों की ना मौजूदगी में कुत्तों की संख्या बढ़ी, रैबीज का खतरा बढ़ा। रैबीज रोधी टीका पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने से कुत्ते के काटने से बहुत सारे लोग असमय मौत के गाल में समा गए। अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि अनजाने में इन पक्षियों की मौत की वजह से घातक बैक्टीरिया और संक्रमण फैला।

इससे पांच वर्षों में करीब पांच लाख लोगों की मौत हो गई। दरअसल, अब हालत यह है कि गिद्ध ही नहीं, कई अन्य पशु और पक्षी प्रजाति खतरे में हैं। इन पशु-पक्षियों के प्राकृतिक निवास स्थान मिट जाने की वजह से यह नए वातावरण के मुताबिक अपने को ढाल नहीं पा रहे हैं। अगर अपने आसपास नजर दौड़ाएं, तो हम पाते हैं कि दस-बीस साल पहले जिन जगहों पर बाग-बगीचे, झाड़ियां, वन क्षेत्र या पेड़-पौधों की एक लंबी चौड़ी शृंखला हुआ करती थी, वहां पर अब कालोनियां, मानव बस्तियां सिर उठाए खड़ी हैं। न जाने कितने पशु-पक्षियों के प्राकृतिक निवास स्थान नष्ट हो जाने से उनकी संख्या घटती गई और अब वे विलुप्त होने के कगार पर हैं या विलुप्त हो गए हैं।

चिड़िया, तोते, सांप, खरगोश, गिलहरी, लोमड़ी, भेड़िया, बिच्छु, गोह जैसे न जाने कितने जीव हैं जो हमारे सहजीवन का हिस्सा हुआ करते थे। यह सब न केवल प्रकृति के सफाई कर्मी का काम करते थे, बल्कि मानवों और पशुओं के लिए खतरनाक माने जाने वाले जीवों और बैक्टीरिया को पनपने से पहले ही उनका भक्षण कर लेते थे। नतीजा यह होता था कि मनुष्य और उससे पाल्य पशु सुरक्षित रहते थे। अब सुरक्षा का वह चक्र टूट गया है जिसकी वजह संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा बढ़ गया है। प्रकृति से खिलवाड़ अब इंसान को ही भारी पड़ने लगा है।

-संजय मग्गू

लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

Trump-Biden: तो जनवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे ट्रंप…वाइडन ने किया ये वादा

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जनवरी में सत्ता का शांतिपूर्ण और व्यवस्थित हस्तांतरण करने का भरोसा दिलाया है।...

झाड़ फूंक कर इलाज के नाम पर धर्म परिवर्तन का प्रयास करने के आरोप में 9 गिरफ्तार

बाराबंकी जिले में धर्म परिवर्तन के आरोप में नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस का कहना है कि इन लोगों पर आरोप...

UP Junior Teacher: हाई कोर्ट से बड़ी राहत, ट्रांस्फर नीति रद्द

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने राज्यभर के प्राथमिक विद्यालयों के जूनियर शिक्षकों को बड़ी राहत दी है। अदालत ने जून 2024 में...

Recent Comments