आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सत्ता और विपक्ष की तैयारियां चरम पर हैं। 26 पार्टियों का इंडिया गठबंधन अपने स्वरूप और रणनीति के लिए बैठकों में व्यस्त है। विपक्षी पार्टियां सीटों के बंटवारे और गठबंधन का चेहरा निश्चित करने के साथ ही चुनाव के मुद्दे भी तय कर रही हैं। भाजपा ने भी अपने चुनावी मुद्दों पर कार्य शुरू कर दिया है।
सरकार अपने 10 साल के काम, जनोपयोगी योजनाओं और मोदी की गारंटी के साथ विकसित भारत के संकल्प को लेकर जनता के बीच उतरती दिख रही है। वहीं विपक्ष को निशाने पर लेने के लिए भ्रष्टाचार और राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ के साथ ही इस बार संसद की कार्यवाही में लगातार डाली जा रही बाधा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनता दिख रहा है। विगत दस वर्षों से प्रत्येक सत्र में हो रहे हंगामे के बाद संसद के दोनों सदनों में सांसदों पर हो रही कड़ी कार्रवाई ने संकेत दे दिए हैं कि सरकार अब इस मुद्दे को भुनाने का पूरा मन बना चुकी है।
संसद के जारी शीतकालीन सत्र में विपक्षी सांसदों के हंगामे पर अभी तक 141 सांसद निलंबित किए जा चुके हैं, जो भारतीय लोकतंत्र में एक रिकॉर्ड है। एनडीए सरकार के काल में लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर अभी तक 255 सांसद सदन की कार्यवाही से निलंबित किए जा चुके हैं, जो मनमोहन सरकार में सांसदों पर हुई कार्रवाई का लगभग चार गुना है। प्रत्येक वर्ष हो रही इन कार्रवाइयों के पीछे हर सत्र का हंगामे की भेंट चढ़ जाना ही मुख्य कारण है।
विगत कुछ वर्षों से दोनों सदनों की प्रोडक्टिविटी में लगातार कमी देखी जा रही है। डेटा एजेंसी पीआरएस के मुताबिक 2023 में अब तक संसद की प्रोडक्टिविटी पिछले तीन सालों में सबसे कम रही है। 2021 में लोकसभा की औसत प्रोडक्टिविटी 68.3 थी। वहीं राज्यसभा में यह आंकड़ा 54 प्रतिशत के आसपास था। 2022 में लोकसभा की औसत प्रोडक्टिविटी 86 और राज्यसभा की औसत प्रोडक्टिविटी 75 प्रतिशत के करीब रही। 2023 में यह आंकड़ा अब तक का सबसे न्यूनतम स्तर पर लोकसभा का औसत 47 और राज्यसभा की औसत प्रोडक्टिविटी 52 पर पहुंच गई है।
2019 में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने के बाद हुए राज्यों के चुनाव में भी भाजपा ने सबसे अधिक जीत हासिल की है। देश के 28 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में से 16 में एनडीए की सरकारें है, जिनमें से 12 में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं। वहीं कांग्रेस महज तीन राज्यों तक सिमट चुकी है। बिहार, झारखंड और तमिलनाडु की गठबंधन सरकारों में भी कांग्रेस शामिल है। बंगाल, दिल्ली, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, पंजाब और केरल में अन्य दलों की सरकारें हैं। स्पष्ट अर्थ है कि भाजपा को लगातार जन समर्थन मिल रहा है।
वहीं प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्री दिन-रात अपने कार्यालयों में या जनता के बीच व्यस्त दिखाई पड़ते हैं। विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए सभी का योगदान मांगा जा रहा है। भाजपा जनता को यह समझाने का कोई अवसर नहीं छोड़गी कि यदि इस महत्वपूर्ण कालखंड में देश की विधायिका ही कार्य रोकने पर तुल जाएगी तो कैसे काम चलेगा? संसद में अभी जितने भी सांसद हंगामा कर रहे हैं या निलंबित हुए हैं, स्वयं प्रधानमंत्री मोदी चुनावों के दौरान उनके निर्वाचन क्षेत्र में इसे मुद्दा बनाएंगे।
वह जनता से पूछेंगे कि क्या परिवार और भ्रष्टाचार का हित साधने के लिए सदन में हंगामा करने वालों को फिर से चुना जाना चाहिए? संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर जहां विपक्ष सरकार पर हमलावर है, वहीं राहुल गांधी ने घटना के लिए गरीबी और बेरोजगारी को इसका कारण बताकर परोक्ष रूप से अपराधियों का ही पक्ष ले लिया है। हंगामा और सेंध लगाने वालों के समर्थन की दोहरी नीति विपक्ष को भारी पड़ सकती है। ऐसा नहीं है कि संसद का यही सत्र हंगामे की भेंट चढ़ा हो।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-अनिल धर्मदेश