हरियाणा में पेयजल की समस्या बढ़ती जा रही है। जून के महीने में पड़ती भीषण गर्मी ने लोगों का बहुत बुरा हाल कर रखा है। पेयजल को लेकर लगभग हर जिले में लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम चिल्ला रहे हैं, सरकार और प्रशासन बेबसी से हाथ मल रहा है। पूरी दुनिया में पेयजल की क्या स्थिति है, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि पृथ्वी की सतह पर जो पानी है, उसमें से 97 प्रतिशत सागरों और महासागरों में है जो नमकीन है और पीने के काम नहीं आ सकता। केवल तीन प्रतिशत पानी पीने योग्य है जिसमें से 2.4 प्रतिशत ग्लेशियरों और उत्तरी-दक्षिणी ध्रुवों में जमा हुआ है। बाकी बचा 0.6 प्रतिशत पानी जो नदियों, झीलों और तालाबों में है जिसे इस्तेमाल किया जा सकता है।
पूरी पृथ्वी पर एक प्रतिशत से भी कम उपलब्ध पेयजल को लोग सामान्य दिनों में किस तरह बरबाद करते हैं, इसे बहुत समझाने की जरूरत नहीं है। एक बाल्टी पानी से जो काम किया जा सकता है, उस काम को पांच से सात बाल्टी पानी खर्च करके किया जाता है। तब यह सोचने की जहमत कोई नहीं उठाता है कि यह चार-छह बाल्टी पानी जो बरबाद किया गया है, वह अगर बच जाता तो संकट के दिनों में काम आता। पानी की फिजूलखर्ची का ही नतीजा है कि हरियाणा में भूजल की स्थिति काफी गंभीर होती जा रही है। प्रदेश के 143 में से 88 ब्लाक अत्यधिक दोहन की श्रेणी में आ चुके हैं। बाकी बचे में से 11 ब्लाक क्रिटिकल श्रेणी में हैं।
नौ ब्लाक सेमी क्रिटिकल श्रेणी और सिर्फ 35 ब्लाक सुरक्षित श्रेणी में हैं। इसके बावजूद लोग गंभीर नहीं हैं। जिस इलाके से सत्तर प्रतिशत भूजल की निकासी होती है, उसे ही सुरक्षित माना जाता है। भूजल में गिरावट का सबसे बड़ा कारण खेती में उपयोग किए जा रहे सबमर्सिबल पंप हैं जिसके माध्यम से फसलों की सिंचाई की जाती है। इतना ही नहीं, वर्षा काल में पानी का उचित प्रबंधन न करना भी एक बड़ी समस्या है।
यदि प्रदेश में तालाबों, कुओं, बावड़ियों की संख्या बढ़ाई जाए, तो काफी हद तक वर्षा जल को बहने से रोका जा सकता है। लेकिन ताबाल, कुएं और बावड़ियां तक अतिक्रमण की चपेट में हैं। गांवों में ही नहीं, शहरों में भी लोगों ने अपने फ्लैटों, दुकानों और कल-कारखानों में सबमर्सिबल पंप लगा रखे हैं जिससे जरूरत से ज्यादा पानी खींचा जा रहा है। कई बार तो होता यह है कि लोग पंप मोटर चलाकर छोड़ देते हैं। टंकी भर जाने के बाद भी पानी बहता रहता है। यह पानी नालियों के जरिये नदी और नदी के माध्यम से सीधे समुद्र में जा मिलता है। पानी के अत्यधिक दोहन का ही नतीजा है कि हरियाणा के कुछ इलाकों में जमीन धंसने लगी है। जमीन के अंदर से पानी खींच लेने से वहां एक रिक्तता पैदा हो गई है जिसकी वजह से जमीनें धंसने लगी हैं।
-संजय मग्गू