हरियाणा की राजनीति में जातियों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। यहां की खाप पंचायतों का राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में काफी दखल रहा है। आज भी है। यही वजह है कि चुनाव चाहे विधानसभा का हो या लोकसभा का, सभी राजनीतिक दल इन जातियों को साधने की हर संभव कोशिश करते हैं। हरियाणा की राजनीति में जाटों का दबदबा रहा है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सबसे ज्यादा जाटों को टिकट दिया था। प्रदेश में आबादी के हिसाब से जाटों का प्रतिशत 25 है। माना जाता है कि जाट जिस पक्ष की तरफ झुकते हैं, प्रदेश में उसी की सरकार बनती है। इसके बाद पंजाबी मतदाताओं का नंबर आता है जो प्रदेश में आठ प्रतिशत हैं। सन 2014 के चुनाव में भाजपा से 24 जाट चुनाव मैदान में थे। लेकिन जब सन 2019 का विधानसभा चुनाव हुआ, तो बीजेपी ने पांच सीटें पिछले के मुकाबले जाटों की कम कर दी अर्थात 19 सीटों पर ही जाट उम्मीदवार उतारे।
लेकिन इस बार तो भाजपा ने सिर्फ 15 जाट उम्मीदवारों को ही मौका दिया है। साल 1014 में भाजपा के छह और साल 2019 में तीन जाट उम्मीदवार ही जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। इस तरह अगर देखें तो 2014 के मुकाबले भाजपा ने 38 फीसदी जाटों को टिकट देने से परहेज किया है। इतना ही नहीं, पिछले दो विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार वैश्य सीटों पर भी कैंची चलाई है। वहीं कांग्रेस ने इस बार जाटों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा जताया है। पहली सूची में कांग्रेस ने 12 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया था। वहीं अंतिम सूची में उसने 14 जाट चेहरों पर भरोसा जतया है। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 26 सीटों पर जाटों को चुनाव मैदान में उतार कर जाटों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। प्रदेश की लगभग 40 विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। वहीं, सात-आठ सीटों पर अहीर मतदाता अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।
वैसे प्रदेश में कांग्रेस का सबसे बड़ा जाट चेहरा फिलहाल विनेश फोगाट हैं। इनको हरियाणा की तमाम खाप पंचायतों और किसान संगठनों का भी समर्थन हासिल है। यदि कांग्रेस ने विनेश फोगाट को अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी चुनाव प्रचार करने की छूट दी, तो वह अपने प्रति उपजी सहानुभूति को कांग्रेस के पक्ष में भुना सकती हैं। वैसे भी यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला खिलाड़ियों और उनके पक्ष में प्रदर्शन करने वाले लोगों से केंद्र सरकार ने जो व्यवहार किया था, उससे हरियाणा में काफी रोष था। अब कांग्रेस उसी को भुनाने की कोशिश में है। इसके बाद उसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर दांव खेला है। हरियाणा में एससी और एसटी जातियों के मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं। इस बार मतदाताओं का मूड क्या है, यह कह पाना बहुत मुश्किल है।
-संजय मग्गू