क्षेत्र और जाति हरियाणा की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्षेत्रवाद, परिवारवाद और जातिवाद से दूर रहने का दम भरने वाली लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय इसी कीचड़ में आकर गिरती हैं। इसके बिना उनको दूसरी कोई राह ही नहीं दिखाई देती है। भाजपा पिछले दो दशक से कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड, समाजवादी पार्टी जैसी कई पार्टियों पर जातिवादी और परिवारवादी होने का आरोप लगाती रही है। लेकिन वह खुद इन वाद और वादों से मुक्त नहीं हो पाई है। इस बार के विधानसभा चुनावों में भी सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर भाजपा, कांग्रेस सहित अन्य दलों ने जातियों और क्षेत्रों को ही साधने का प्रयास किया है। हरियाणा में ही यदि किसी राजनीतिक दल को चुनाव जीतना है, तो जाट (25 प्रतिशत), ओबीसी (33 प्रतिशत) और दलित (21 प्रतिशत) को साधना उनकी मजबूरी है।
इस जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 28 जाट उम्मीदवारों पर अपना दांव खेला है। वहीं भाजपा ने भी 16 जाट उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनाव में 22 ओबीसी उम्मीदवारों पर अपना प्यार लुटाया है, तो कांग्रेस भी बीस ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर भाजपा से बहुत पीछे नहीं है। हां, अनुसूचित जाति के मामले में सबने किसी किस्म की उदारता नहीं दिखाई है। भाजपा और कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 सीटों पर ही प्रत्याशी खड़े किए हैं। इस बार कई विधानसभा सीटों पर यह भी देखने में आ रहा है कि जिस सीट पर भाजपा ने जाट कैंडिडेट उतारा है, कांग्रेस ने भी उस सीट पर जाट कैंडिडेट ही उतारा है। ऐसी कई विधानसभा सीटें हैं जिनमें जाट बनाम जाट, ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण, ओबीसी बनाम ओबीसी मुकाबला हो रहा है।
इन उम्मीदवारों को उतारते समय क्षेत्र में जातीय मतदाताओं की संख्या का भी बहुत बारीकी से ध्यान रखा गया है। टिकट बांटते समय राजनीतिक परिवारों का भी ध्यान रखा गया। हरियाणा के नया राज्य बनने के बाद सन 1967 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भी राजनीतिक परिवारों का यहां बहुत अधिक दबदबा था। आज भी है। कांग्रेस ने अपने 89 उम्मीदवारों में से 24 टिकट राजनीतिक विरासत वाले परिवार के लोगों को टिकट दिया है। भाजपा भी इससे बच नहीं पाई है और उसने ऐसे 11 उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इनेलो ने पांच और जजपा ने ऐसे दो उम्मीदवारों पर अपना दांव खेला है। हरियाणा की राजनीति में भजनलाल, बंसीलाल, देवीलाल और सर छोटूराम परिवार की एक अहम भूमिका रही है। इन परिवारों के बेटे, बेटियां, पौत्र-पौत्रियां आदि विधानसभा चुनाव में किसी न किसी पार्टी या निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना भाग्य आजमा रहे हैं।
-संजय मग्गू