संविधान में आरक्षण की व्यवस्था बहुत सोच-विचार करने के बाद की गई थी। आरक्षण की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि देश को आजाद हुए दो-तीन साल हुए थे। उस समय देश की बहुसंख्यक आबादी की आर्थिक दशा कुछ अच्छी नहीं थी। दलित जातियां सैकड़ों साल से गरीबी और भुखमरी की मार झेल रही थीं। गांवों और शहरों में रहने वाले एससी/एसटी समुदाय में आने वाले लोग दाने-दाने को मोहताज थे।
उनके साथ सामाजिक स्तर पर भेदभाव भी बहुत किया जाता था। लोग उनको छूना तक पसंद नहीं करते थे। यही वजह थी कि एससी/एसटी को आरक्षण देने की व्यवस्था दी गई। तब यह सोचा गया था कि इन पददलित जातियों को नौकरियों, सरकारी योजनाओं और स्कूल-कालेजों में अतिरिक्त सुविधा देकर उन्हें आर्थिक स्तर पर ऊंचा उठाया जाए ताकि ये दूसरे समुदाय के स्तर तक पहुंच सकें। इससे समाज में एक तरह की समानता आएगी।
आर्थिक स्तर पर समानता आने से सबको एक साथ आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। हमारे देश के नीति निर्धारकों ने यह सोचा था कि समाज में जो आगे बढ़े हुए लोग हैं, उनके मार्ग में किसी तरह की बाधा उत्पन्न किए बिना पिछड़े हुए लोगों को आगे बढ़े हुए लोगों के बराबर लाकर खड़ा कर दिया जाए। उनकी यह सोच वाजिब थी। इससे सबका भला होना था। उन्हें स्कूल कालेजों में भी विशेष सुविधाएं दी गईं। यह व्यवस्था पूरे देश में लागू है।
लेकिन हरियाणा के कुछ निजी कालेज और विश्वविद्यालय आरक्षण सुविधा का लाभ इसके पात्रों को नहीं दे रहे हैं या हीलाहवाली कर रहे हैं। मनोहर सरकार को यह भी पता चला है कि राज्य के निजी विश्वविद्यालय गरीब और आरक्षण के लाभ की श्रेणी में आने वाले विद्यार्थियों को उनकी पात्रता के लाभ प्रदान नहीं कर रहे हैं। इस मामले की जानकारी जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल को हुई, तो उन्होंने इस मामले में सख्त कदम उठाने का फैसला लिया है।
फीस में छूट और आरक्षण के लाभ संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वाले विश्वविद्यालयों पर राज्य सरकार दस लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक जुर्माना लगाने की तैयारी कर रही है। यदि सरकार इस नियम को लागू कर देती है तो राज्य के निजी विश्वद्यिालयों की मनमानी पर लगाम लगेगा। गरीब और एससी/एसटी समुदाय के विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा। इसके लिए सरकार ने आगामी विधानसभा सत्र के दौरान हरियाणा निजी विश्वविद्यालय ( संशोधन) विधेयक पेश करने का फैसला किया है।
इन दिनों प्रदेश में 25 विश्वविद्यालय हैं। झज्जर जिले में स्थित संस्करम विश्वविद्यालय को भी इसके दायरे में लाने पर विचार किया गया है। प्रस्तावित नए विधेयक के मुताबिक, विश्वविद्यालय में प्रवेश होने के तीन महीने बाद उच्चतर शिक्षा विभाग की टीमें विश्वविद्यालयों में जाकर जांच करेंगी।
-संजय मग्गू