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“मेरा बेटा इतना कमजोर नहीं था” ये कहना छोड़ दीजिए

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क्या बनाना चाहते हैं आप अपने बच्चे को, वो जो आप नहीं बन पाए, या वो जो आप सिर्फ ख्वाबों में सोचते हैं, अरे बचपन से एक बात आपने हमेशा सुनी होगी, कि हर ख्वाब हमेशा पूरा हो, ये जरूरी नहीं, तो फिर अपने बच्चे कि जिन्गी दाव पर लगाकर आप अपने क ख्वाब को पूरा करने की रट क्यों लगाते हैं। हर बच्चा जीनियस हो ये जरूरी नहीं, लेकिन हर बच्चे में एक हुनर, एक प्रतिभा है, इससे आप इनकार भी नहीं कर सकते, लेकिन अगर आप उसके हुनर-प्रतिभा के विपरीत उसके ख्वाबों पर अपने ख्वाबों का वजन थोड़ देंगे, तो बेशक एक दिन वो अपने ख्वाब पूरे करने का जुनून भी खो देगा, और आपके ख्वाबों को पूरा करने के दवाब में शायद अपना जीवन भी।

कोटा में अगस्त 2023 तक 24 बच्चे अपने हाथों अपना जीवन, मौत के नाम कर चुके हैं यानि हर महीने औसतन तीन छात्र अपना जीवन खो रहे हैं, जो बच्चे डिप्रेशन-तनाव में ये कदम उठाते हैं, उनकी सांसें रुक जाने के बाद विलाप करते माता-पिता का बिलखती आवाज में यही कहना होता है, कि मेरा बच्चा इतना कमजोर नहीं था, सही कहते हैं माता-पिता जिसने अपने हाथों अपना जीवन, मौत के हवाले किया, वो कमजोर कैसे हो सकता है, जान कर जान देना, कोई बुज्दिल कर भी नहीं सकता। यहां मेरा समर्थन खुदकुशी-आत्महत्या को कतई नहीं, बल्कि उस मनस्थिति को बदलने का है, जो मां-बाप में अपनी औलादों को लेकर है, कि आपको बड़े होकर ये बनना है। झल्लाहट होती है इस एक वाक्य पर, जो ख्वाब आपका रहा, उसे आपको खुद पूरा करना था, और जब आप नहीं कर पाए, तो उस ख्वाब को पूरा करने का दबाव, तनाव, भार आप अपनी कोमल औलाद पर क्यों थोपते हैं, क्यों देते हैं उसके मन-मस्तिष्क को वो दबाव, जिसमें घुट-घुट कर जीने से बेहतर उसे अपना जीवन खत्म करना ज्यादा सहज लगता है, फिर कहते हैं मेरा बच्चा कमजोर नहीं था।

हां नहीं होता आत्महत्या करने वाला कोई बच्चा कमजोर, उसके मन भी चाहत होती है, चकाचौंध भरी दुनिया के हर रंग को जीने की, देखने की, संसार के सुनहरे कोनों को घूमने की, लेकिन माता-पिता का अधूरा ख्वाब, उनकी औलाद को कुछ अच्छा-बहेतर बनता देखने की ख्वाहिश, उसके इन सपनों को तोड़ देती है, यही उम्मीदें तोड़ देती हैं उसकी सांसों की उस ड़ोर को, जिसे वो अनचाहे भी चोटिल होने देना नहं चाहता, लेकिन माता-पिता को कोटा के कोचिंग सेंटर में बैठे उस बच्चे के मन में पल रहे तनाव का आभास तक नहीं होता, कि अगला पल, अगली घड़ी उसे क्या करने को उकसा रही है, जानते हैं क्यूं??? क्योंकि आंखों के आगे ख्वाहिशों का पर्दा आपको अपनी औलाद के तनाव तक पहुंचने ही नहीं देता, और जब वो तनाव एक दिन उसे ले डूबता है, तो आप कहते हैं मेरा बच्चा इतना कमजोर नहीं था।

हां नहीं था वो कमजोर, कमजोर किया कुछ अधूरे सपनों ने, उन ख्वाहिशों ने, जिनसे उसकी ख्वाहिशें एकदम भिन्न थीं, बड़ा आदमी तो उसे भी बनना था, उसे भी कुछ ऐसा करना था, जो मां-पापा का नाम रोशन हो, बस उसकी राह अलग थी, जिसके रास्ते में कोटा नहीं आता था। वो सुकून से बढ़ रहा था उस राह पर, हंसता मुस्कुराता, मां-पापा का प्यार पाता, लेकिन उम्र 14 के पार क्या हुई, मां-पापा की उससे उम्मीदें, उसके चेहरे की मुस्कान से बड़ी हो गईं, जिन्हें पूरा करने आपने अपने जिगर के टुकड़े को उस राह भेद दिया, जिसका एक पड़ाव कोटा था, और वो कोटा के कोलाहल में अपना सुकून खो बैठा, खो गए उसके वो सपने जो उसकी आंखों ने खुद के लिए देखे थे, धूमिल वो ख्वाह भी हुए जो आपने उसकी आंखों में सजाकर उसके कोटा रवाना किया था, आज वो मौन है, लेकिन उस मौन का शोक चींख चींख कर कह रहा है, कि सिर्फ कोटा ही नहीं, देश अलग अळग कोनों में चल रही ऐसी कोटा फ्रेक्ट्रीज को बंद कर दो, जो मुझे मौन होने पर मजबूर करती हैं। एंटी हैंगिंग फैन्स, कवर्ड बालकनी, प्रशासन के लिए एहतियात और बंदोबस्त हो सकती हैं, लेकिन जिनका बन बोझिल ख्वाबों से नीरस हो चहा हो, वो तो जीकर भी मर चुका है। जब चाहत नहीं हैं, तो मत धकेलिए औलाद को उस रहा, जिसपर वो चलना नहीं चाहता। दौड़ने दीजिए, उड़ने दीजिए उस आसमान में जो उसकी अपनी ख्वाहिश है, वो काबिल है, और काबिल बनके दिखाएगा, क्योंकि हर बच्चा जीनियस झले न हो, हुनरमंद होता है, और उसके हुनर पर शंका कभी मत कीजिएगा।

स्मिथा का खत, हर मां-बाप के नाम

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