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रामवृक्ष बेनीपुरी: धरती पर पांव रखकर झुकाया आसमान को

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राष्ट्रसेवा के साथ-साथ साहित्य सेवा करने वाले कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक चिंतक, पत्रकार संपादक, यायावर और किसान संघर्ष के नेतृत्वकर्ता और मुखर आवाज थे। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के लिए उनके जीवन के लगभग साढ़े नौ वर्षों का समय जेल की काल-कोठरी में व्यतीत हुआ, मगर वहां भी वे शांत नहीं बैठे और निरंतर लेखन करते रहे।

हजारीबाग जेल से जयप्रकाश नारायण, योगेंद्र शुक्ला, गुलाब चन्द्र गुप्ता, सूरज नारायण सिंह, रामनंदन मिश्र और शालिग्राम सिंह जैसे छह आजादी के चर्चित दीवानों को ‘फिर दिवाली आई सजनी’ नाटक के मंचन की योजना को घटित कराते हुए जेल से भगाने में पूरा सहयोग किया था। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर अपने छात्र जीवन में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ने वाले बेनीपुरी लोकजीवन, लोक आस्था और लोक अंचल के सर्जनात्मक संरक्षक और रचनात्मक नेता थे।

छोटी उम्र में ही माता-पिता की स्नेहछाया से वंचित, मगर लोकप्रेम से अभिसिंचित इस कलम के जादूगर की प्रातिभ क्षमता को विकसित करने में रामचरितमानस का भरपूर प्रभाव और योगदान रहा। भाषा शिल्प के जादूगर और अमृत भाव के आलोक पुरुष विशिष्ट शैलीकार बेनीपुरी ने अनमोल शब्दचित्रों का सृजन किया। माटी की मूरतें, पतितों के देश में, अंबपाली, चिता के फूल, जंजीरें और दीवारें, गेहूं और गुलाब, पैरों में पंख बांधकर, उड़ते चलो उड़ते चलो जैसी विभिन्न विधाओं की साहित्यिक कृतियां अपने अनूठे अंदाज और कथन के लिए आज भी पढ़े और सराहे जाते हैं।

अपने संपादन की पत्र पत्रिकाओं में नए रचनाकारों को प्रकाशित करके प्रेरित करने वाले बेनीपुरी ने रचनाकारों की कई सशक्त पीढ़ियों का निर्माण किया। अपने मुक्त ठहाकों की तरह ही वे अपने लेखन में भी पूर्णत: उन्मुक्त हैं, लेकिन कहीं वैचारिकता, अनुशासन, शिष्टता और वैशिष्ट्य से अलग होकर नहीं।

लोक जीवन का संवर्धन विभिन्न जातियों की कार्यकुशलता और सद्भावना से ही संभव है, इस बात को बेनीपुरी भली-भांति समझते थे। उनके साहित्य में छात्र, स्त्री, किसान, मजदूर, दलित और हर वह वर्ग तथा जाति सम्मानित ढंग से सम्मिलित है जिसे तथाकथित समाज में वंचित और उपेक्षित माना जाता है। सांप्रदायिक सद्भाव के प्रबल हिमायती बेनीपुरी की विचारधारा समाजवादी रही।

उनके समाजवाद की शुचिता में मार्क्स और गांधी के प्रभाव समानुपाती हैं। युवकों को जागृत तथा उनके कार्यकौशल को सुदृढ़ करने के लिए उन्होंने मशाल, कुदाल, नींव की ईंट, गेहूं और गुलाब जैसे छोटे-छोटे रेखाचित्र लिखे जो उद्बोधित और प्रेरित करते हैं। संतुलित जीवन और राष्ट्र के लिए उन्होंने कला और विज्ञान दोनों को महत्वपूर्ण माना। भौतिकता को अनुशासित रखने के लिए आध्यात्मिकता की अनिवार्यता है।

जीवन के आह्ललाद और उल्लास में कला की महत्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्र के विकास में गांव की बड़ी अहमियत है-इस सोच को कार्यरूप देने के लिए बेनीपुरी ने अपने लोक-जनपद में शांति निकेतन की तरह ही बड़ा संस्थान खड़ा करने के सपने को आकार देना शुरू कर दिया था और इसके केंद्र में सतत प्रवाहित बागमती नदी को रखा था। बागमती कॉलेज की स्थापना के बाद ग्रामीण अंचल में ही रंगशाला, किसान केंद्र, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार-व्यवस्था जैसी परिकल्पनाओं को साकार करने की दिशा में वे अग्रसर हो गए थे।

युगद्रष्टा लेखक और दूरदर्शी नेता रामवृक्ष बेनीपुरी ने सीतामढ़ी भूकंप-त्रासदी को देखने के लिए जाते हुए गांधीजी को अपने गांव के पास रोक लिया था और जिस भूमि पर खड़ा होकर गांधी ने श्रमदान का किया उस पवित्र गांधीभूमि पर बहुत ऐतिहासिक करने की बेनीपुरी ने योजना बनाई लेकिन तत्काल जिस भरथुआ चौर में हजारों एकड़ जमीन वर्षभर जल में डूबी रहती थी उसे गांधीजी के कुदाल उठाते ही लोगों की अपार भीड़ ने नहर बनाकर जलजमाव से मुक्त कर दिया। बेनीपुरी कलम और कुदाल दोनों को एक साथ संयोजित करने वाले बड़े लेखक हुए हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-संजय पंकज

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