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बागी, पैराशूट प्रत्याशी बने रहेंगे भाजपा-कांग्रेस के लिए मुसीबत

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हरियाणा में आखिरकार नाम वापस लेने का आखिरी दिन भी बीत गया। सोमवार का दिन भाजपा और कांग्रेस के लिए काफी भारी रहा। भाजपा और कांग्रेस हाईकमान से लेकर स्थानीय स्तर के नेता और विधायक प्रत्याशी तक बागियों की मान-मनौव्वल करते नजर आए। भाजपा में केंद्रीय मंत्री, प्रदेश प्रभारी से लेकर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी तक बागियों को मनाने में लगे रहे। मुख्यमंत्री सैनी के बहुत मान-मनौव्वल करने पर पूर्व मंत्री कविता जैन और उनके पति राजीव जैन माने। भाजपा ने पूर्व स्पीकर संतोष यादव, पूर्व सांसद राज कुमार, रामपाल यादव समते 11 बागियों को आखिरकार मना ही लिया। इसके लिए भाजपा नेताओं को काफी मशक्कत करनी पड़ी। किसी को मनाना पड़ा, तो किसी को अपनी हालात से वाकिफ कराना पड़ा। कुछ को निकट भविष्य में कहीं न कहीं एडजस्ट करने का आश्वासन भी देना पड़ा। यह सब कुछ करना कांग्रेस के लिए भी बहुत आसान नहीं रहा। काफी भागदौड़ और बार-बार चिरौरी विनती करने के बाद कुल 17 लोगों को मना पाई और उनके नामांकन वापस करा पाई।

नलवा से निर्दलीय के रूप में नामांकन दाखिल करने वाले पूर्व वित्त मंत्री संपत सिंह और उनके बेटे गौरव संपत सिंह सहित कुल 17 बागियों के नामांकन पत्र वापस लेने के लिए मनाने में पसीने छूट गए। भाजपा और कांग्रेस के कुल 28 बागियों ने अपने नामांकन पत्र वापस लिए, तो दोनों पार्टियों को थोड़ी सी राहत मिली। इसके बावजूद इन दोनों दलों की सांस अभी तक अटकी हुई है क्योंकि दोनों दलों के 17-17 बागियों ने नामांकन पत्र वापस लेने से इनकार कर दिया है और अभी चुनावी मैदान में अड़े हुए हैं। यह 34 बागी दोनों दलों के लिए संकट का कारण बन सकते हैं। भाजपा और कांग्रेस के लिए संकट का कारण सिर्फ यह बागी ही नहीं है, बल्कि दोनों दलों ने विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में जो पैराशूट उम्मीदवार उतारे हैं, वह भी इन दोनों दलों के कंठ में अटक गए हैं।

स्थानीय नेता और कार्यकर्ता इन पैराशूट प्रत्याशियों का जमकर विरोध कर रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधा दर्जन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस ने दूसरी जगहों से लाकर प्रत्याशियों को उतारा है। पार्टी हाईकमान के समझाने-बुझाने पर स्थानीय नेता और कार्यकर्ता खुलेआम विरोध भले ही न कर रहे हों, लेकिन ऐसी स्थिति में भितरघात की आशंका काफी हद तक बढ़ गई है। नाराज नेता और कार्यकर्ता अपनी पार्टी के प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में भाग लेने की जगह घर बैठ गए हैं या फिर चुनाव प्रचार के लिए दबाव पड़ने पर कई तरह के बहाने बना रहे हैं। हरियाणा के चुनावी बयार को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि स्थानीय प्रत्याशी बनाम बाहरी प्रत्याशी एक मुद्दे का रूप लेता जा रहा है। इससे भी दोनों दलों के प्रत्याशियों को नुकसान पहुंच सकता है।

-संजय मग्गू

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