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RSS: भागवत बोले, देश के भूले गौरव को पुनर्स्थापित करने की जरूरत

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने 24 नवंबर को हैदराबाद में ‘लोकमंथन-2024’ के समापन कार्यक्रम में देश के भूले हुए गौरव को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया से अच्छी चीजें जरूर लेनी चाहिए, लेकिन उसे अपनी आत्मा और संस्कृति को बनाए रखते हुए ऐसा करना चाहिए।

भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि भारत को अपने गौरव को पुनः स्थापित करने के लिए पहले अपनी जड़ों को समझना होगा और उसी के अनुसार अपने विचारों को विकसित करना होगा। उन्होंने खासकर नई पीढ़ी से आग्रह किया कि वे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बारे में सोचें और उसे समझें।

भागवत (Mohan Bhagwat) ने यह भी कहा कि बाहरी सवालों का जवाब देने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारत ने पहले ही दार्शनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से दुनिया में अपनी जीत हासिल की है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पिछले 2,000 वर्षों में कई प्रयोग किए गए, जिनमें विभिन्न प्रकार के विश्वास, विचारधाराएं और पद्धतियां शामिल थीं, लेकिन सभी प्रयोगों ने न केवल अपने रास्ते को खो दिया, बल्कि अब वे भारत की ओर देख रहे हैं।

आरएसएस प्रमुख (Mohan Bhagwat) ने यह भी सवाल उठाया कि भारत को बाहरी दुनिया के सवालों का जवाब क्यों देना चाहिए? उन्होंने कहा, ‘‘हमें उनके नियमों के अनुसार उनके मैदान में कबड्डी क्यों खेलनी चाहिए? हमें दुनिया को अपने मैदान में लाना है।’’ यह उनका संकेत था कि भारत को अपनी दिशा तय करने का अधिकार है, और उसे दूसरों के सिद्धांतों और नियमों के हिसाब से नहीं चलना चाहिए।

भागवत ने भारतीय ज्ञान और विज्ञान के महत्व पर भी बात की। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में विज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्थान है, और यह दर्शन इंसान की बुद्धिमत्ता को महत्व देता है। भारतीय दृष्टिकोण में तर्क और बुद्धिमत्ता का समावेश होता है, जो समस्याओं का हल खोजने में मदद करता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को समसामयिक रूप में प्रस्तुत करने की जरूरत है, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रासंगिक बना रहे।

भागवत (Mohan Bhagwat) के भाषण में यह भी कहा गया कि भारत को बाहरी विचारधाराओं का अनुसरण करने की आवश्यकता नहीं है। भारत को अपनी सांस्कृतिक पहचान और आत्मनिर्भरता को बनाए रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। उनका यह मानना था कि भारत को अपनी विशेषता और महानता पर गर्व करना चाहिए और उसे दुनिया को एक नई दिशा दिखाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

इस कार्यक्रम में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद थे। निर्मला सीतारमण ने धर्मग्रंथों का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय समाज में कभी भी वनवासियों के साथ भेदभाव नहीं किया गया। इस प्रकार, इस सम्मेलन में भारतीय संस्कृति, धर्म, और ज्ञान को समकालीन समय में पुनः स्थापित करने की बात की गई।

भागवत के विचारों ने यह संदेश दिया कि भारत को अपनी सांस्कृतिक और दार्शनिक धरोहर को समझकर उसे दुनिया में पुनः प्रभावी बनाना होगा।

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