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नदियों के प्रदूषण पर रोक नहीं लगी तो पीने के पानी को तरसेंगे लोग

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संजय मग्गू
नदी, जंगल, पानी, हवा, मिट्टी प्रकृति ने मनुष्य को एक उपहार के रूप में दी है। सदियों से हमारे पूर्वज प्रकृति प्रदत्त इस उपहार को सहेजते आए हैं। मनुष्य ने जब सामूहिक जीवन में प्रवेश किया, तो उसने सबसे पहले नदियों के किनारे ही अपनी बस्तियां बसाई। इसका कारण यह था कि उसे पीने के लिए पानी, खाने के लिए मछलियां और खेती के लिए पानी नदियों के किनारे सहजता से उपलब्ध हो जाते थे। बाद में जब आबादी बढ़ी, बस्तियों ने शहरों और गांवों का रूप धारण किया, तो उसने अपनी जरूरतों के लिए नदियों से ही नहरें निकालीं। इन नदियों और नहरों ने मानव सभ्यता के विकास में अहम भूमिका निभाई। यही वजह है कि इन नदियों के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए उन्हें मां का दर्जा दिया और उनकी पूजा की, लेकिन आज उन्हीं मां स्वरूपा नदियों को प्रदूषित करके इंसान अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। हरियाणा में नहरें और नदियां प्रदूषण का शिकार हो रही हैं। इनका जल पीने और नहाने लायक नहीं बचा है। अब तो हालात इतने बदतर हैं कि इन नदियों के पानी का उपयोग न करने वाले लोग भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। नदियों और नहरों से पानी से जिन खेतों की सिंचाई हो रही है, उस खेत से पैदा होने वाली फसल प्रभावित रही है। इन खेतों में पैदा होने वाला अनाज विषैला होता जा रहा है। इन अनाजों का उपयोग करने वाले लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। विषाक्त खाद्यान्नों की वजह से लोगों की असमय मौत हो रही है, जवानी में ही उन्हें बुढ़ापा महसूस हो रहा है। दरअसल, प्रदेश की नदियों और नहरों में फैक्ट्रियों से निकलने वाला रसायन युक्त पानी डाला जा रहा है। रसायन युक्त जहरीले पानी का उपचार भी नहीं किया जाता है। विषाक्त रसायन सीधे फैक्ट्रियों से नदियों और नहरों में डाले जा रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और अदालतें इस मामले में कई बार सख्त आदेश दे चुकी हैं, लेकिन इन आदेशों पर गंभीरता से अमल नहीं हो रहा है। जब भी मामला तूल पकड़ता है, तो अधिकारी यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं कि वह मामले की जांच कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। ज्यादातर मामलों में यह कार्रवाई होती ही नहीं है। अधिकारियों की इस लापरवाही का खामियाजा पूरे देश-प्रदेश की जनता को विषाक्त जल और खाद्यान्न के रूप में भुगतना पड़ता है। यह अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है कि प्रदेश को कभी जीवन देने वाली घग्गर नदी आज लोगों में कैंसर रोग बांट रही है। घग्गर नदी इतनी प्रदूषित हो गई है कि उसका पानी छूने लायक भी नहीं रह गया है। यदि नदियों को साफ-सुथरा बनाने के लिए सख्त कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाले कुछ सालों में लोग पीने के पानी के लिए तरस जाएंगे।

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