दुनिया में ऐसी कोई वस्तु, लोग नहीं हैं जो अस्तित्वहीन हों, जिनके निर्मिति के पीछे कोई कारण न हो। धरा, आसमान और प्रकृति में मौजूद सभी प्राणी किसी न किसी विशेष गुण हेतु जाने जाते हैं, कभी-कभी तो स्थान विशेष की वजह से भी चीजें विशेष मूल्यवान हो जाती हैं जैसे सड़क पर पड़ा बेकार पत्थर किसी मूर्तिकार के हाथ आते ही विशेष मूर्ति में तब्दील हो जाता है और मूल्यवान हो जाता है।
बरेली में जन्मीं और दिल्ली में पली बढ़ीं युवा कलाकार प्रिया मिश्रा के प्रिंटमेकिंग में यही विचार आम है। राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ से पुरस्कृत कृति ‘ब्रीदिंग स्टोन’ जो एक सेरीग्राफी कार्य है, में सेब, पत्थर और चींटे का संयोजन है और दिखाने का प्रयास है कि अहसास अनुभूति जैसी प्रक्रियाएं सभी के साथ होती हैं। बस जरूरत होती है उसको देख पाने हेतु संवेदनशीलता की।
लाल, काले रंगों के साथ प्रभावी पोत कृति को बेहद सुंदर और चींटे का पत्थर के साथ सेब जैसा बर्ताव बेहद संजीदा बनाता है। निरीहता पर तरस नहीं बल्कि उनके साथ आत्मीयता की जरूरत है। यही विचार कलाकार के हर कलाकृति पर भारी है। बचपन से ही पिताजी को ड्रॉइंग करते हुए देखना, उनके बनाये हुए कृतियों एवं रास्तों से प्रभावित होना फिर धीरे-धीरे उसी रास्ते पर आगे बढ़ जाना और पिताजी के अधूरे सपने को पूराकर जाना सिद्ध हुआ जब आपका दाखिला कालेज आॅफ आर्ट दिल्ली में हुआ।
प्रिंट मेकिंग से स्नातक के बाद लखनऊ आर्ट कालेज से आगे की शिक्षा तथा द्वारका से नेशनल स्कॉलरशिप के बाद लखनऊ से ही राज्य पुरस्कार, आईफेक्स, नेपाल में सामूहिक प्रदर्शनी और अमृतसर के गैलरी में कृतियों का चुनाव सभी आपकी उपलब्धियां रही हैं। कलाकार संजीव किशोर के काम से प्रभावित प्रिया मिश्रा जी, कलाकार जयकृष्ण अग्रवाल जी पर भी काम कर चुकी हैं। कला में संवेदनशीलता का होना बहुत जरूरी होता है।
एक कलाकार को अपने भाव उसमें इस तरीके से प्रकट करना चाहिए या ऐसे माध्यम का चुनाव करना चाहिए ताकि कृतियां बिना शीर्षक के ही लोगों की समझ में आ सके। आपकी कृतियों में विविधता है किसी एक ही विषय पर लगातार काम करना भी आपको पसंद नहीं है, चंचल मन अपने आस-पास के चीजों को देखता और महसूस करता है जो चीजें नहीं दिख रही हैं, लुप्त हो गई हैं या होने के कगार पर हैं, के पीछे के कारण पर भी आप कुछ न कुछ करने के प्रयास में रहती हैं, कहा भी गया है कि मानवीय संवेदनाओं के बिना कृतियां निष्प्राण हैं। आपकी कृतियां संवेदनायुक्त हैं।
समाज में व्याप्त नकारात्मकता पर भी सकारात्मक कृतियां आपके उद्देश्यों में है। कोरोना आपदा में डॉक्टर्स के सेवाभाव को देखकर कृति ‘मदर टेरेसा’ का निर्माण हुआ, वुडकट में बने इस कृति में मानवता की विशालता को दिखाने का प्रयास है। वहीं दूसरी कृति में बिल्कुल शांत अवस्था में खड़ी नाव, आस-पास का पसरा सन्नाटा, भयावह परिवेश को दर्शाता हुआ है सांकेतिक तरीके से ये भी कोरोना के भय को दिखाता है।
आस-पास की चीजों से मैं जल्दी ही प्रभावित हो जाती हूं, जो चीज दिन-ब-दिन संख्या में कम होती जा रही है, मैं उसको भी पेंट करती हूं। जब मैं वर्क कर रही होती हूं, उस समय मैं किसी से बात नहीं कर सकती क्योंकि मुझे हाई कंसंट्रेशन की जरूरत होती है, यह तकनीक भी ऐसी ही है। कलाकार प्रिया मिश्रा के ये शब्द उनके जीवन की एकाग्रता को दर्शाते हैं।
आपके कृतियों में कोई भी वस्तु, रंग, पोत अनायास ही नहीं आ जाते बल्कि बेहद ही चतुराई के साथ सभी का संयोजन है। तमाम मुश्किलों और झंझावातों से पार पाते हुए, अपने कार्य पथ पर लीन रहते हुए समाज के बारे में सोचना भी आपकी विशेषता है। मानव द्वारा प्रकृति के साथ किये गये दुर्व्यवहार का ही असर है कि पक्षियों के कलरव, उनका उछलना, कूदना, फुदकना देखने को मन तरस उठता है। आपकी कृतियों में ये अभी जीवित हैं।
कृति ‘ट्रूथ आफ सिटी लाइफ’ में चिढ़ा हुआ मनुष्य, बड़े आकार में कौवा समाज में फैले नकारात्मकता को दर्शाता है पर अंधेरे से उजाले की तरफ की बात भी है इस कृति में, जो सकारात्मक विचारधारा को बनाए रखने में सहायक है। कृति ‘द ब्लैक’ में बेहद ही डरावना पल कैद है, जो समाज के बहुत बड़े धब्बे को दर्शाता है जिससे पार पाना देश के लिए बहुत ही जरूरी हो गया है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-पंकज तिवारी