नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते चंद्र कुमार बोस ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर जापान के रेनकोजी मंदिर में रखे नेताजी के ‘अवशेषों’ को भारत लाने की मांग की है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की है कि नेताजी के अवशेषों को उनके जन्मदिवस 23 जनवरी से पहले भारत लाने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। यह पत्र एक समय में आई उस मांग का हिस्सा है, जब नेताजी से जुड़े कई सवालों को लेकर देशभर में बहस जारी है।
नेताजी का ‘बड़ा अपमान’: चंद्र कुमार बोस
पत्र में चंद्र कुमार बोस ने कहा कि नेताजी का “बड़ा अपमान” है कि उनके अवशेष आज भी जापान के रेनकोजी मंदिर में रखे हुए हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नेताजी की यह इच्छा थी कि वह आजाद भारत में लौटें, लेकिन अफसोस, उनकी जान की कुर्बानी के बावजूद उनकी इच्छाएं पूरी नहीं हो सकी। 18 अगस्त 1945 को नेताजी ने अपनी जान दी थी, और अब तक उनकी अवशेषों की भारत वापसी का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। चंद्र कुमार बोस ने इस स्थिति को अत्यधिक असंवेदनशील और अपमानजनक बताया।
नेताजी के सम्मान में स्मारक बनाने की अपील
चंद्र कुमार बोस ने प्रधानमंत्री से यह भी अनुरोध किया कि दिल्ली के कर्तव्य पथ पर नेताजी के सम्मान में एक भव्य स्मारक बनाया जाए। उन्होंने पत्र में लिखा, “नेताजी के अवशेष जापान में पड़े हुए हैं, यह हमारे देश के लिए एक अपमान है। इसे तत्काल सुधारा जाना चाहिए। नेताजी के अवशेषों को 23 जनवरी, जो कि उनकी जयंती है, से पहले भारत लाया जाना चाहिए, और उनके सम्मान में दिल्ली में एक स्मारक निर्माण किया जाना चाहिए।”
यह मांग नेताजी की जयंती के मौके पर देश में उनकी स्वाधीनता संग्राम में भूमिका को सम्मानित करने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। चंद्र कुमार बोस का मानना है कि इस तरह के कदम से नेताजी के प्रति सम्मान और उनकी सशक्त छवि को पुनः स्थापित किया जा सकेगा।
नेताजी की मृत्यु पर सरकार से बयान की मांग
चंद्र कुमार बोस ने पत्र में यह भी मांग की कि सरकार अब नेताजी की मृत्यु को लेकर एक अंतिम बयान जारी करे। उन्होंने कहा कि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुई थी, क्योंकि भारत सरकार ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किया है। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि झूठी धारणाओं को खत्म करने के लिए सरकार एक आधिकारिक बयान जारी करे, जिससे नेताजी के निधन को लेकर फैली गलतफहमियों को दूर किया जा सके।
नेहरू सरकार और जाँच समितियों का उल्लेख
पत्र में चंद्र कुमार बोस ने 1956 में जवाहरलाल नेहरू सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति का भी जिक्र किया, जिसने नेताजी की मृत्यु पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसके अलावा उन्होंने 1974 में बने खोसला आयोग की रिपोर्ट और 2005 में न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट का भी उल्लेख किया। इन रिपोर्टों में नेताजी की मृत्यु को लेकर अलग-अलग निष्कर्ष आए थे, जिनमें भारत सरकार ने अपनी सहमति जताई थी।
चंद्र कुमार बोस का कहना है कि अब इस स्थिति को स्पष्ट करने की आवश्यकता है ताकि नेताजी के योगदान को सही तरीके से सम्मानित किया जा सके और उनकी मृत्यु से जुड़ी मिथक और गलत धारणाएं समाप्त हो सकें।
नेताजी से जुड़ी मांगों का महत्व
नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर विभिन्न प्रकार की मांगें लंबे समय से उठती रही हैं। चंद्र कुमार बोस द्वारा की गई यह अपील देशभर में नेताजी के योगदान और सम्मान के मुद्दे को और तेज़ कर सकती है। उनके अवशेषों की वापसी और सम्मानित स्मारक के निर्माण की मांग के साथ ही यह विषय एक बार फिर महत्वपूर्ण राजनीतिक चर्चा का हिस्सा बन गया है।
नेताजी के अवशेषों का भारत लौटना और उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए व्यापक कदम उठाना यह सुनिश्चित कर सकता है कि उनकी विरासत और संघर्ष को आने वाली पीढ़ियां ठीक से समझें और सम्मानित करें।