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ज्ञान हासिल करने को मौत से टकराने का दुस्साहस

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शिक्षक अपने छात्र-छात्राओं को पढ़ा-लिखाकर नौकरी करने लायक ही नहीं बनाता है, बल्कि वह उन्हें एक सभ्य और मानवीय इंसान भी बनाता है। वह अपने विद्यार्थी के भीतर छिपी प्रतिभा को उजागर करके उनका पूर्ण विकास करता है। चाहे शांतिकाल हो या युद्धकाल, शिक्षक अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता है। इन दिनों गाजा और इजराइल के बीच युद्ध चल रहा है, लेकिन वह शिक्षा बंद हो गई, ऐसा भी नहीं है। गरजती मिसाइलों, फूटते विध्वंस बमों और किसी की भी जान लेने को आतुर गोलियों के बीच भी बच्चे पढ़ रहे हैं। स्कूल-कालेज बमबारी के चलते ध्वस्त हो गए हैं, लेकिन शरणार्थी शिविरों में भी ज्ञान का दीपक अपनी पूरी ऊर्जा और प्रकाश के साथ जल रहा है। गाजा पट्टी में मौत और विध्वंस के बीच कुछ अध्यापक और शिक्षित युवा हताश, निराश और डरे सहमे बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

तंबुओं में खुले स्कूलों में पढ़ाने वालों को वेतन मिलेगा या नहीं, इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं है। बस, वे चाहते हैं कि इस संकटकाल में भी बच्चे पढ़ें। चारों तरफ ज्ञान का उजियारा फैले ताकि भविष्य के यह नागरिक युद्ध जैसी स्थितियों को रोक सकें। खुद शासक बनें तोे युद्ध न करें और यदि युद्ध रोकने की स्थिति में हों, तो युद्ध न होने दें। गाजा पट्टी में ही क्यों? अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा पर पूरी तरह से रोक लगा दिया गया है। यूनेस्को का आंकड़ा है कि तालिबानी शासन में 25 लाख लड़कियां शिक्षा से वंचित हो गई हैं। इसके बावजूद तालिबानी शासन की विरोधी शिक्षित महिलाएं घरों में, किसी ऐसी जगह जहां तालिबानी सैनिकों की निगाह न पड़े, वहां बहुत कम रोशनी में बच्चियों को पढ़ा रही हैं। उन्हें साइंस, गणित और अन्य विषयों की जानकारी दे रही हैं। यह महिलाएं जानती हैं कि जिस दिन वे पकड़ी गईं, उन्हें जेल की यातना सहनी पड़ेगी। उन्हें मौत के घाट उतारा सकता है।

बच्चियां और उनके अभिभावक भी जानते हैं कि यह तालिबानी शासन के खिलाफ एक तरह का विद्रोह है। पकड़े गए तो सजा निश्चित है। लेकिन इन गुप्त स्कूलों में पढ़ने और पढ़ाने वालों का साहस तो देखिए, वे मौत को भी चकमा देकर शिक्षा हासिल कर रहे हैं। तालिबानी शासन को पसंद न करने वाली शिक्षित महिलाएं आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके शिक्षा की लौ जगाए हुए हैं। वह आनलाइन कक्षाएं लगा रही हैं। बड़ी संख्या में लड़कियां घर पर ही रहकर पढ़ाई कर रही हैं। उन्हें मालूम है कि वे कभी परीक्षा नहीं दे पाएंगी, लेकिन ज्ञान हासिल करने की ललक उन्हें मौत से टकराने का साहस पैदा कर रही है।

तालिबानी शासन के कारिंदे तो लड़कों की पढ़ाई में भी बाधा डालने की कोशिश करते हैं। फिर लड़कियों के मामले में उनका रवैया कैसा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अफगानिस्तान के जिन प्रांतों और इलाकों में तालिबानियों की पकड़ ज्यादा है, वहां बहुत अधिक सख्ती है। बाकी इलाकों में अधिकारियों और शिक्षकों के बीच एक अलिखित समझौता है। वे जानते हुए भी बच्चियों को पढ़ने देते हैं।

-संजय मग्गू

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