हमारे देश में पहले जब कोई किसी को प्रणाम या अभिवादन करता था, तो सामने वाला आशीर्वाद देते हुए कहता था-शतायु भव यानी सौ साल तक जियो। हमारे प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि तब आम तौर पर लोग सौ साल तक स्वस्थ जीवन बिताते भी थे। पिछले सौ-सवा सौ साल में लोगों की औसत आयु प्राचीनकाल के मुकाबले घटी है, लेकिन छह-सात दशक के मुकाबले बढ़ी है। इसके कई कारण हैं। यदि हम बात करें सदियों पुराने शतायु जीवन की, तब लोग न तो जिम जाते थे, न ही किसी दूसरी तरह के व्यायाम किया करते थे।
उनकी जिंदगी के दैनिक कार्यकलाप में ही सभी तरह के आयाम-व्यायाम शामिल थे। इसलिए उन्हें इन सब आसनों की जरूरत भी नहीं थी। उनके जीवन का एक लक्ष्य हुआ करता था। उन्होंने अपने पूरे जीवन को चार आश्रमों में बांट रखा था। लगभग प्रत्येक व्यक्ति इन आश्रमों का लक्ष्य पूरा करने के प्रति सचेत रहता था। यह उनके जीवन का एक लक्ष्य था। वास्तव में अपने जीवन का लक्ष्य पूरा करने का जुनून रखने वाला व्यक्ति आमतौर पर अपने जीवन में लक्ष्य प्राप्त कर ही लेता है।
वहीं वे अपने परिवार के साथ रहते थे। संयुक्त परिवार में रहने से व्यक्ति कई मामलों में एक तरह से निश्चिंत हो जाता है। उसके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है। दादा-दादी, चाचा-चाची, ढेर सारे चचेरे, ममेरे और सगे भाई-बहन इनका प्यार, लाड़, दुलार व्यक्ति के चरित्र और संस्कार विकास में सहायक रहता था। जीवन भर वैवाहिक संबंधों में एक ही स्त्री या पुरुष के प्रति प्रतिबद्धता उनकी आयु को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती थी।
अपने परिवार का प्यार और विश्वास जीवन में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है, यह साबित हो चुका है। जिन परिवारों में आपसी प्यार, भाईचारा कायम रहता है, उन परिवारों के लोग लंबी जिंदगी जीते हैं। दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद शाम को जमने वाली महफिलें उस थकान को मिटा देती थीं जो दिन भर काम काम करने के दौरान पैदा हुई थी। नाच-गाना- बजाना, गीत-लोकगीत से सजी शाम की महफिल जीवन को रंगीन बना देती थीं।
इस बीच यदि मन हुआ तो मदिरा भी लोग पी लेते थे। मदिरा का सेवन वर्ज्य नहीं था। आम तौर पर मदिरा सेवन किया जाता था, लेकिन उनमें आज की तरह रसायन का उपयोग नहीं होता था। इसलिए शरीर को हानि भी कम होती थी। थोड़ा बहुत विकार आता भी था, तो अगले दिन परिश्रम के दौरान वह दूर हो जाता था। आज भी बिना जिम में पसीना बहाए, पांच-दस किमी की दौड़ लगाए स्वस्थ और लंबी जिंदगी जिया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि मशीनों का कम से कम उपयोग किया जाए। कहीं जाना है, पैदल जाइए। आटा या मसाला घर पर चक्की में पीसिए। घरेलू कामों में भी मशीनों का न्यूनतम उपयोग कीजिए। फिर देखिए, नब्बे-सौ साल का निरोगी जीवन हमें हासिल होता है या नहीं। बस, हमें हौसला कायम रखते हुए इरादे पर कायम रहना होगा।
-संजय मग्गू