चारा घोटाला के आरोप में जब 1997 में राष्ट्रीय जनता दल नेता और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव पर जेल जाने की तलवार लटकने लगी तो उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में सीएम पद की कमान अपनी पार्टी के किसी शिक्षित व अनुभवी नेता को सौंपने के बजाय अपनी पत्नी राबड़ी देवी के हाथों सौंप कर राजनीतिक जगत के लोगों को आश्चर्य में डाल दिया था। उस समय 25 जुलाई 97 से लेकर 11 फरवरी 99 तक राबड़ी देवी पहली बार इस विशाल राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं।
उसके बाद उन्होंने तीन बार मुख्यमन्त्री पद सम्भाला। यहाँ तक कि अपने दूसरे और तीसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री पद पर बैठने के बाद पूरे देश में इस बात की चर्चा बलवती थी कि लालू यादव ने आखिर किस योग्यता के आधार पर राबड़ी देवी को इतने विशाल राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया? जबकि उस समय उनके पास न ही राजनीतिक और प्रशासनिक सूझ बूझ थी न ही कोई शैक्षिक योग्यता।
बस एक ही योग्यता थी कि वे लालू यादव की पत्नी होने के नाते बिना खयानत के उनकी सबसे वफादार प्रतिनिधि के रूप में राजद का सत्ता नेतृत्व संभाल सकती थीं। समय आने पर उसे हस्तानांतरित भी कर सकती थीं। वही उन्होंने किया भी। वक़्त पड़ने पर नीतीश कुमार द्वारा जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना नीतीश को रास नहीं आया। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं।
इसी तरह भाजपा ने उत्तरांचल में मार्च 2021 में एक प्रयोग कर तीर्थ सिंह रावत को राज्य का मुख्यमंत्री मनोनीत किया था। 10 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री पद पर बैठने के बाद रावत ने अपने कार्यकाल के चार महीने भी पूरे नहीं किये और भाजपा द्वारा 4 जुलाई 21 को ही उन्हें पद से हटा दिया गया। पुष्कर सिंह धामी भी भाजपा का एक ऐसा ही प्रयोग थे जो न केवल भाजपा बल्कि संघ के लिए भी इतने लाभदायक साबित हुए कि पार्टी ने एक जगह से चुनाव हारने के बावजूद उन्हें दूसरे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़वाकर पुन: मुख्यमंत्री बनाया। कुछ ऐसी ही स्थिति पिछले दिनों मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री चयन को लेकर देखी गयी।
भाजपा नेतृत्व ने सभी कयासों पर विराम लगाते हुए एक ऐसे नेता को राजस्थान का मुख्यमंत्री मनोनीत किया जिसके नाम की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। पार्टी ने जयपुर की सांगानेर सीट से पहली बार जीत दर्ज करने वाले विधायक भजन लाल शर्मा को जो कि चार बार भाजपा के राज्य महासचिव के रूप में भी कार्य कर चुके हैं, को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया। मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान की सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मोहन यादव को मुख्य मंत्री घोषित कर दिया गया।
यहाँ भी मोहन यादव की सबसे बड़ी योग्यता यही है कि वे शुरू से ही संघ से भी जुड़े रहे और छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्धार्थी परिषद की राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाते रहे। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी आरएसएस व जनसंघ से खानदानी तौर पर जुड़े रहे नेता विष्णुदेव साय को राज्य के मुख्य मंत्री पद की लगाम सौंप दी गयी।
विष्णुदेव साय के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक वीडियो तेजी से वायरल हुआ जिसमें साय के चुनाव प्रचार के दौरान एक सभा को सम्बोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह जनसमूह से यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि आप विष्णुदेव साय को विधायक चुनें मैं इनको ‘बड़ा आदमी’ बनाऊंगा। भाजपा व संघ हिमंता विस्वा सरमा जैसे नेताओं को भी महत्व देती है जो संस्कारी तौर पर संघ या विद्यार्थी परिषद् से भले ही न जुड़े रहे हों परन्तु यदि वे भजपा के एजेंडे के प्रति मुखरित होकर काम करने का हौसला रखते हों तो वे भी पार्टी की ‘वैचारिक वफादारी’ के मापदंड पर खरे उतरेंगे।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-तनवीर जाफरी