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जनता की अदालत का फैसला हर बार सही नहीं होता केजरीवाल जी!

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दिल्ली सीएम पद से अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया है। आतिशी मार्लेना नई मुख्यमंत्री होंगी। अरविंद केजरीवाल अब जनता की अदालत में जाएंगे। उनका कहना है कि जब तक जनता की अदालत उन्हें बेगुनाह साबित नहीं कर देती है, तब तक वे कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। केजरीवाल के जनता की अदालत में जाने का मौटे तौर पर जो मतलब निकलता है, वह यह कि कुछ ही महीनों बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में उतरेंगे और यदि उन्हें दिल्ली की जनता ने बहुमत दिया, तो वे फिर से पद ग्रहण करें। दरअसल, जिस तरह हमारे देश और पूरी दुनिया में अदालतें होती हैं, उस तरह की कोई अदालत जनता की नहीं होती है। चुनावों के दौरान जनता यानी जो भी मतदाता है, वह प्रत्याशियों की छवि, उनकी नीतियों, उनके कार्यक्रमों के आधार पर एक धारणा बनाती है।

उसके बाद यह तय करती है कि उसे अमुक प्रत्याशी को चुनना है या नहीं। यदि मतदाता की इच्छा और धारणा के विपरीत प्रत्याशी होता है, तो वह उसे नकार देती है। यह धारणा यानी विचार किसी नेता या प्रत्याशी के प्रति स्थायी नहीं रहते हैं। समय-समय पर धारणाएं बदलती रहती हैं। यदि मतदाताओं अर्थात जनता की धारणाएं भौतिक वस्तु परिस्थितियों में बदलती नहीं रहतीं, तो जिसको एक बार जनता ने चुन लिया, वही हर बार चुना जाता, लेकिन वस्तुत: ऐसा होता नहीं है। सन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 283 सीटें जीती थीं। पांच साल शासन के मतदाताओं की पीएम नरेंद्र मोदी के प्रति धारणा बदली और भाजपा को 303 सीटें मिलीं। लेकिन इस साल लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के लाख जोर लगाने पर भी भाजपा को 240 सीटों पर ही सिमटना पड़ा।

भाजपा और पीएम मोदी के प्रति धारणाएं यदि नहीं बदली होती, तो हर बार 283 सीटें ही मिली होतीं। अब अगर अरविंद केजरीवाल जनता की अदालत में जाने की बात कर रहे हैं, तो उन्हें यह याद रखना चाहिए कि वर्ष 2014 में 70 में से 28, वर्ष 2015 में 67 और वर्ष 2020 में 62 सीटों पर जब आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी, तब उनके ऊपर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा था। उनकी छवि बेदाग थी। लेकिन आज उन पर शराब घोटाले का आरोप है जिसका मामला अदालत में चल रहा है।

जनता की अदालत ने तो लोकसभा चुनाव के दौरान अपना फैसला सुना दिया था। वैसे जनता की अदालत का फैसला हर बार सही हो, ऐसा भी नहीं होता है। सन 1975 में पूरे देश में इमरजेंसी लागू करने वाली इंदिरा गांधी को जनता की अदालत ने बुरी तरह पराजित करके साबित किया कि इमरजेंसी का फैसला गलत था। लेकिन दो-ढाई साल बाद ही उसी जनता की अदालत ने इंदिरा गांधी को प्रचंड बहुमत देकर दिल्ली की सत्ता सौंपी थी। अब सवाल यह है कि जनता की अदालत का फैसला इंदिरा को हराने वाला सही था या जिताने वाला?

-संजय मग्गू

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