किसी समय रामपुर राज्य के राजा रणवीर सिंह थे। वह अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट हो, तो वह तुरंत उसे दूर करने का उपाय करते। उन्होंने सड़कों के किनारे धर्मशालाएं बनवाई, लोगों और व्यापारियों को चोर-लुटेरे परेशान न कर पाएं, इसके लिए उन्होंने व्यापक प्रबंध किए। वह साहित्य और कला का भी बड़ा सम्मान करते थे। उनके राज्य में साहित्यकारों और कलाकारों को संरक्षण मिलता था। एक दिन की बात है। राजा का दरबार लगा हुआ था। तभी एक बहुरुपिया महादेवी का रूप धारण करके वहां पहुंचा।
उसे देखकर सारे लोग यही समझे कि महादेवी का पदार्पण हुआ है। बाद में बहुरुपिये ने ही अपना वेश उतारा तो लोगों को सच्चाई का पता चला। राजा भी यह देखकर काफी खुश हुए। उन्होंने बहुरुपिये से कहा कि यदि तुम साधु का वेश इस तरह धरो कि तुम्हें कोई पहचान न पाए, तो तुम्हारी कला को मानूंगा। यह सुनकर बहुरुपिया चला गया। कुछ दिन बीतने के बाद लोगों ने देखा कि नगर सेठ की बगिया में एक साधु धूनी रमाए बैठा है। लोगों में चर्चा चली कि साधु वीतरागी है। वह किसी से कुछ नहीं लेता है। उसे धन का तो मोह ही नहीं है।
धीरे-धीरे यह चर्चा राजा के कानों में पड़ी, तो वह एक दिन सेठ की बगिया में पहुंचे। उन्होंने साधु को ढेर सारे रत्न आभूषण देने चाहे, लेकिन साधु ने कुछ भी लेने से मना कर दिया। दूसरे दिन दरबार में बहुरुपिया पहुंचा और उसने साधु वाली बात बताई। राजा बहुत खुश हुआ। उसने बहुरुपिये को ढेरा सारा इनाम दिया। राजा ने पूछा कि कल तुम्हें रत्न-आभूषण दिया जा रहा था, लेकिन तुमने नहीं लिया। तब बहुरुपिया बोला, महाराज, मुझे साधु के वेश की मर्यादा भी तो बचाए रखनी थी।
-अशोक मिश्र