बच्चों में एकाग्रता घट रही है। यदि कहा जाए कि बच्चों में ही नहीं, बड़े भी अपने काम पर एकाग्र नहीं हो पा रहे हैं, तो यह गलत नहीं होगा। दरअसल, बच्चों से लेकर बड़ों तक के सामने सूचनाओं का इतना बड़ा विस्फोट हो रहा है कि वह किसी एक बात पर अपने को एकाग्र नहीं कर पा रहे हैं। बच्चे खेलने जाते हैं, तो उन्हें रील्स की याद आ रही है। रील्स देखते हैं, तो वैसा करने का मन होता है। पढ़ने बैठते हैं, तो उन्हें टीवी पर दिखाए जाने वाले उनके मनपसंद सीरियल याद आने लगते हैं। ऊपर से संकट यह है कि मां-बाप या परिजनों का यह दबाव भी काम कर रहा है कि उन्हें परीक्षा में अच्छे मार्क्स लाने हैं। टॉप करना है। क्लास में नंबर वन रहना है। यह दबाव भी उनका ध्यान भटका रहा है। सूचनाओं के विस्फोट ने उनके मस्तिष्क को अस्थिर कर दिया है। वह सूचनाओं को अपने दिमाग में सहेजने के चक्कर में दिमागी तौर पर अस्थिर हो रहे हैं। सवाल यह है कि सूचनाओं का विस्फोट हो कहां से रहा है?
मोबाइल से, टेलीविजन से। दूरसंचार के साधनों ने पूरी दुनिया को एक छोटे से यंत्र में लाकर समेट दिया है। दुनिया के किसी भी हिस्से में छोटी से छोटी घटना हो, पूरी दुनिया में तुरंत फैल जाती है। मानव मस्तिष्क की सूचनाओं को संग्रहीत करने की भी एक सीमा है। ऐसी स्थिति में बच्चा हो या जवान, या फिर बुजुर्ग, उसकी एकाग्रता खंडित होने लगती है। जो काम करने बैठता है, मन तुरंत दूसरी ओर भागने लगता है। नतीजा यह होता है कि काम सही तरीके से नहीं होता है। तो फिर, इससे बचने का क्या उपाय है? यह एक सहज प्रश्न है। सबसे अच्छा तरीका वही पुराना तरीका है जिसे हमारे पूर्वज करते आए हैं। ध्यान। सबसे जरूरी है कि सुबह या शाम को ध्यान लगाया जाए। इससे दिमाग को एकाग्र करने में सहायता मिलेगी। दिमाग को आराम मिलेगा। जितना हो सके, मोबाइल या टेलीविजन जैसी चीजों से दूर रहा जाए। समय हो, तो बच्चों को खेलने के लिए प्रेरित करें। उन्हें प्रकृति से जुड़ने को कहें।
अगर घर में फुलवारी है, तो फुलवारी के छोटे-मोटे काम उन्हें सौंपे। खुद भी करें। किताबों को पढ़ने की पुरानी आदत को फिर से अपनाएं। सोचिए आपने कब कोई पुस्तक पूरी पढ़ी थी। पुस्तक, पत्रिकाएं और धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना, एकाग्रता बढ़ाने का सबसे बढ़िया साधन है। पढ़ने से मन भटकेगा नहीं। घर और बाहर के काम खुद करें और एकाग्रता की कमी से जूझ रहे बच्चों से भी करवाएं। कुछ दिनों बाद आप देखेंगे कि नतीजे सकारात्मक निकलते हैं। मोबाइल या टेलीविजन से पूरी तरह कट जाना भी आज के दौर में अव्यावहारिक होगा। जितनी जरूरत हो, उतना ही उपयोग करें। उसके बाद उससे दूर हो जाएं। बच्चे को भी सिखाएं-बताएं कि इन चीजों से दूर रहना, उनके लिए कितना फायदेमंद है। मन का भटकना, काम में मन न लगना जैसी समस्याएं सिर्फ हमारी अतिवादी सोच की वजह से पैदा हो रही हैं। हमें इससे बचना ही होगा।
-संजय मग्गू