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मालदीव में ‘इंडिया आउट’ का नारा लगाने वाला बना राष्ट्रपति

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हिंद महासागर में एक देश है मालदीव। ग्लोब पर इस देश की आकृति केंचुए जैसी दिखती है। तीन सौ वर्ग किमी में फैले देश की कुल आबादी लगभग पांच लाख 31 हजार है। हमारे देश के किसी छोटे से शहर जितना। यह बारह सौ द्वीपों का समूह है। लेकिन अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण चीन और भारत की इसमें बराबर रुचि है। अभी तीस सितंबर को वहां राष्ट्रपति के चुनाव हुए थे और आज ही उसका परिणाम आया है। परिणाम भारत के पक्ष में नहीं है।

चुनाव के दौरान ‘इंडिया आउट’ का नारा लगाने वाले प्रोग्रेसिव पार्टी के उम्मीदवार और राजधानी माले के मेयर मोहम्मद मोइज्जू नए राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। चुनाव परिणाम आने के बाद कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में काम करने वाले इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने चुनाव के दौरान इंडिया फर्स्ट का नारा दिया था। किसी देश में राष्ट्रपति के चुनाव में भारत मुद्दा बनने वाला शायद मालदीव पहला देश है। चुनाव के दौरान गरीबी, बेकारी, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे नदारद रहे। सिर्फ इंडिया आउट और इंडिया फर्स्ट के नारे पर ही चुनाव लड़ा गया।

इस मुद्दे को हवा दी चीन ने। चीन और भारत दोनों पिछले दो दशक से माले में पूंजी निवेश करके मालदीव को अपने प्रभुत्व में लेने की कोशिश में लगे हुए थे। वर्ष 2018 में राष्ट्रपति का चुनाव जीतने वाले मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े इब्राहिम मोहम्मद सालिह के शासनकाल में निस्संदेह भारत और मालदीव बहुत नजदीक आए थे। भारत ने बीते दस साल में दो सैन्य हेलिकाप्टर और एक छोटा विमान भी मालदीव को दिया था। भारत के 75 सैनिक यहां रहकर एयरक्राफ्ट का संचालन भी करते हैं।

पीपुल्स प्रोग्रेसिव पार्टी इसी बात को मुद्दा बनाकर लगातार भारत का विरोध करती रही है। उसका कहना है कि भारत मालदीव में अपना प्रभुत्व जमाकर हिंद महासागर में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखना चाहती है। इसी वजह से भारत ने वहां काफी निवेश भी कर रखा है। यह बात सही है कि भारत मालदीव में निवेश करके उसके साथ दोस्ताना संबंध रखना चाहता है। भारत और मालदीव का सदियों से सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं। लेकिन चीन पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका जैसे छोटे देशों में पूंजी निवेश और कर्ज देकर उनके महत्वपूर्ण बंदरगाहों, हवाई अड्डों और सामरिक क्षेत्रों को अपने कब्जे में लेता रहा है। 

चीन में मालदीव में 2013 से लेकर 2018 की सरकार के दौरान जिस तरीके से अरबों  डॉलर का कर्जा देकर निवेश किया उससे पूरा मालदीव पाकिस्तान बनने की राह पर आगे बढ़ गया है। 2014 में चीन के राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान चीन मालदीव का एक मैत्री पुल बनना शुरू हुआ। जबकि यहीं के तकरीबन 17  आईलैंड को पर्यटन के तौर पर विकसित करने के लिए करीब 400 अरब डॉलर का कर्ज भी चीन ने मालदीव को दिया।

इन द्वीपों का अगले 50 साल के लिए पट्टा करवा लिया।  यह चीन की पुरानी नीति है। पहले कर्ज दो, पूंजी निवेश करो और फिर कर्ज वापस मांगो या उस देश के बंदरगाहों, हवाई अड्डों पर कब्जा कर लो। भारत ने कभी ऐसी नीति नहीं अपनाई। वह केवल दोस्ती का हाथ बढ़ाकर अपने साथ जोड़ता रहा है।

संजय मग्गू

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