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गृहयुद्ध की आग में झुलसती म्यांमार की जनता

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संजय मग्गू
में भारतीय क्रांतिकारियों और विद्रोहियों को जेल में रखने के लिए बर्मा के इरावती नदी के पास मांडले जिले में एक जेल बनाई गई थी। बहादुरशाह जफर, बाल गंगाधर तिलक और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों को मांडले जेल में रखा गया था। म्यांंमार की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी का दर्जा हासिल करने वाला मांडले शहर पर अब वहां के तीन सशस्त्र विद्रोही गुटों ने कब्जा कर लिया है। भारत की विडंबना यह है कि उसके पड़ोसी देशों में या तो विद्रोह चल रहा है या फिर वहां की सरकारों के खिलाफ जन बगावत चल रही है। श्रीलंका में एक साल पहले जो हुआ, वह सभी जानते हैं। बांग्लादेश में एक-डेढ़ महीने पहले शेख हसीना की सत्ता पलट दी गई है। अब वहां विद्रोही गुटों की अंतरिम सरकार है। मालदीव में नई बनी सरकार भारत विरोधी रवैये के लिए जानी जाती है। पाकिस्तान तो अपने उदय काल से ही भारत विरोधी रहा है। चीन से भारत का छत्तीस का आंकड़ा सन 1952 के बाद से ही है। बचा था म्यांमार जिसे नब्बे के दशक तक बर्मा और प्राचीन पुस्तकों में ब्रह्मदेश के नाम से जाना जात था, पिछले तीन साल से आंतरिक विद्रोह की आग में झुलस रहा है। वैसे म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध से भारत का न तो कोई लेना देना है और न ही भारत को किस प्रकार का कोई खतरा है। लेकिन जब पड़ोसी देश अशांत और गृहयुद्ध की आग में जल रहे हों, तो कुछ न कुछ प्रभाव तो पड़ता ही है। म्यामार में तीन भिन्न-भिन्न जातीय समूहों ने मिलकर ब्रदरहुड समूह का निर्माण किया है। इन तीनों ने संयुक्त रूप से म्यांमार की सत्ता पर काबिज सैन्य सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए हाथ मिला लिया है और वे म्यांमार के एक बड़े हिस्से पर कब्जा करते हुए मांडले शहर तक पहुंच गए हैं। सन 2021 में म्यांमार की वैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार को हटाकर सेना ने देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी। इस घटना से पहले ही म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी उत्तरी शान प्रांत में अधिक स्वायत्तता की मांग को लेकर सशस्त्र विद्रोह किए हुए थी। तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी पूर्वी म्यांमार के तांग इलाके में अधिक स्वायत्तता हासिल करने के लिए सन 2009 से ही संघर्षरत थी। वहीं, अराकान आर्मी पश्चिमी म्यांमार के रखाइन प्रांत में स्वायत्तता की मांग कर रही है। इन तीनों संगठनों ने पिछले साल 27 अक्टूबर को सैन्य सरकार के खिलाफ हाथ मिला लिया था। आज हालात यह है कि म्यांमार के आधे हिस्से पर इन तीनों जातीय समूह के सशस्त्र लड़ाकों का कब्जा है। म्यांमार की गांधीवादी विचारधारा की मानी जाने वाली आंग सान सू ची की सरकार को अपदस्थ करके उनके नेताओं को थाईलैंड में निर्वासित कर दिया है। इस निर्वासित सरकार का समर्थन भी ब्रदरहुड मिलिशिया को हासिल है। इस गृहयुद्ध में सबसे ज्यादा दुर्गति म्यांमार की जनता की है। सैन्य सरकार आम जनता को विद्रोहियों से समर्थन का आरोप लगाकर अत्याचार करती है। वहीं विद्रोही गुट सरकार का समर्थक होने की तोहमत लगाकर उन्हें तंग करते हैं। लाखों लोग म्यांमार छोड़कर पड़ोसी देशों में शरण लेने को मजबूर हैं। भारत में भी म्यांमार से भाग कर आए रोहिंग्या एक समस्या बनकर रह गए हैं।

संजय मग्गू

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