सुप्रीमकोर्ट का यह कहना कि हम अजन्मे बच्चे के दिल की धड़कनें बंद नहीं कर सकते, एक सामान्य कथन नहीं है। यह इंसानी जज्बात की पराकाष्ठा है। यह कथन बताता है, कि समाज में सबको जीने का समान अधिकार है, भले ही वह गर्भस्थ शिशु ही क्यों न हो? वैसे तो चिकित्सा जगत में गर्भपात एक सामान्य प्रक्रिया है। अपने देश में हर साल लाखों की संख्या में गर्भपात किए जाते हैं। कभी किसी महिला या नाबालिग के साथ बलात्कार होता है और वह गर्भवती हो जाती है, तो कई बार देश की अदालतों ने खतरा उठाकर भी गर्भपात की इजाजत दी है क्योंकि यह पीड़िता के भावी जीवन, उसके मानसिक और शारीरिक संताप से जुड़ा मामला होता है।
महिला या भ्रूण की स्थिति असामान्य होने, किसी बीमारी का शिकार होने या शिशु के दिव्यांग पैदा होने की आशंका हो, तो गर्भपात कराया जाता है और होना भी चाहिए। लेकिन पिछले कुछ दिनों से चर्चा में रहे 26 सप्ताह के गर्भावस्था की समाप्ति का मामला सामान्य नहीं था। महिला ने एक साल पहले ही बच्चे को जन्म दिया था। वह बच्चे को स्तनपान करा रही थी।
माना जाता है कि स्तनपान कराने वाली महिलाएं 95 फीसदी गर्भधारण नहीं कर सकती हैं। उसे अपनी गर्भावस्था का जब पता चला कि वह छह महीने की गर्भवती है, तो इसी अक्टूबर महीने में उसने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीमकोर्ट ने पहले उसे गर्भपात की इजाजत भी दे दी, लेकिन एक डॉक्टर के मेल ने सारी कहानी ही बदल दी। डॉक्टर ने सरकारी वकील को ईमेल भेजते हुए कहा कि यदि इस मामले में गर्भपात कराना है, तो सबसे पहले बच्चे का दिल धड़कना बंद करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो यह समय पूर्व प्रसव होगा और इससे बच्चे में कई तरह की विसंगतियां पैदा हो सकती हैं।
बच्चे को आजीवन विशेष देखभाल की जरूरत पड़ सकती है। इसके बाद तत्काल गर्भपात पर रोक लगाते हुए सुप्रीमकोर्ट की तीन जजों की पीठ ने वही फैसला लिया जो सबको जीने का अधिकार प्रदान करती है। सच कहें, तो यह फैसला उस भारतीय सभ्यता, संस्कृति और दर्शन के अनुकूल है जो यह मानती है कि जन्म और मृत्यु का निर्धारण सर्वशक्तिमान ईश्वर के हाथ में है। चींटी से लेकर हाथी तक सबको ईश्वर ने ही जीवन दिया है। ऐसे में किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को यह इजाजत नहीं दी जा सकती है कि वह किसी दूसरे के जीवन से खिलवाड़ करे।
हमारे देश में तो किसी व्यक्ति को अपने जीवन से खिलवाड़ करने का भी अधिकार नहीं है। सुसाइड का प्रयास करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई इसीलिए की जाती है क्योंकि हर व्यक्ति का जीवन देश और समाज की संपत्ति माना जाता है। ऐसी स्थिति में आप सोचकर देखिए जिस बच्चे ने अभी दुनिया नहीं देखी है। जिसे अपनी मां की ममता का एहसास भी नहीं हुआ है, उसे जन्म लेने से पहले ही मार देना, कहां का न्याय है। भले ही उसने अभी जन्म नहीं लिया है, लेकिन जिस दिन से उसके दिल ने धड़कना शुरू किया था, वह इस समाज का अंग हो गया था। हां, अब यह उस मां-बाप पर निर्भर है कि वह पालें या किसी ऐसे दंपति को गोद दे दें जो संतान के लिए तरस रहा हो।
-संजय मग्गू