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मुसलमान के घर रहने में कोई बुराई नहीं

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स्वामी विवेकानंद धार्मिक सहिष्णुता के प्रबल समर्थक थे। उन्हें वेदांत दर्शन का विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु माना जाता है। संन्यासी जीवन जीते हुए भी वह भारत की गुलामी को लेकर चिंतित रहा करते थे। कहा जाता है कि उन्होंने भगिनी निवेदिता को प्रेरणा देकर क्रांतिकारियों से संपर्क करके अनुशीलन समिति का गठन कराया था। वे जाति, धर्म, प्रांत और संप्रदाय जैसी संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठ चुके थे। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। सन 1891 की बात है।

वह देशाटन करते हुए एक बार राजस्थान के माउंट आबू पहुंचे। वहां की प्राकृतिक सुषमा को देखकर मोहित हो गए। उन्होंने वहीं कुछ दिन रहकर तपस्या करने का मन बनाया। उन्होंने माउंट आबू पर्वत में ही एक ठीक ठाक गुफा देखी और उसकी सफाई करवाकर रहने लगे। लोगों को जब पता चला कि स्वामी विवेकानंद यहां रहते हैं, तो उनके शिष्य और अन्य लोग वहां आने लगे। कुछ दिनों बाद बरसात के दिन आ गए और बारिश होने पर कुछ जीव-जंतु भी उस गुफा में शरण लेने लगे। उसी समय एक व्यक्ति आगे आया और बोला, मैं मुसलमान हूं।

यदि आप चाहें तो मेरे घर में चलकर रहें। मैं घर में आपके लिए अलग व्यवस्था कर दूं। स्वामी विवेकानंद उसके घर में चले गए। जानकारी मिलने पर खेतड़ी के महाराजा ने उन्हें अपने पास बुलाया। वहां उन दिनों धर्म चर्चा चल रही थी। महाराजा के निजी सचिव ने उनसे कहा कि हिंदू साधु होकर आप मुसलमान के घर में रह रहे हैं। विवेकानंद ने जवाब दिया कि धर्मशास्त्र में ऐसा तो कहीं नहीं लिखा है कि मुसलमान के घर में नहीं रहना चाहिए। यह सुनकर निजी सचिव शांत हो गया। बाद में खेतड़ी के महाराजा ने विवेकानंद के शिकागो जाने की व्यवस्था की।

-अशोक मिश्र

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