इन दिनों पड़ रही प्रचंड गर्मी के चलते पूरा उत्तर भारत पेयजल संकट के दौर से गुजर रहा है। जल संकट के कारण लोग त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली जैसे राज्यों में जनता पानी को लेकर परेशान है। दिल्ली सरकार ने तो पेयजल समस्या के लिए हरियाणा को जिम्मेदार मानते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में उसने हरियाणा से अतिरिक्त पानी दिलाने की मांग की है। वहीं इस मामले में जवाब देते हुए हरियाणा सरकार ने कहा है कि दिल्ली सरकार को जल प्रबंधन हमसे सीखना चाहिए ताकि जरूरत के समय पेयजल संकट से निबटा जा सके। असल में यदि जल प्रबंधन की ओर पहले से ध्यान दिया जाए, तो गर्मी के दिनों में होने वाली दिक्कतों को खत्म तो नहीं लेकिन कम जरूर किया जा सकता है।
दिल्ली सरकार भी यदि वाटर हार्वेस्टिंग की पद्धति का उपयोग करे, तो बरसात के दिनों में बेकार बह जाने वाले पानी को संरक्षित करके न केवल जल स्तर को बढ़ाया जा सकता है, बल्कि बरसाती जल का उपयोग पीने में भी किया जा सकता है। हरियाणा से अतिरिक्त पानी मांगने वाली दिल्ली को यह समझना चाहिए कि प्रदेश पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहा है। हरियाणा सरकार कई दशकों से सतलुज यमुना लिंक नहर बनकर तैयार हो गई होती, तो पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को पानी की कमी की समस्या से दो-चार नहीं होना पड़ता। एसवाईएल नहर का निर्माण पूरा न होने से हमारे हिस्से का बहुत सारा पानी पाकिस्तान में चला जाता है
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जिसका दुष्परिणाम कई राज्यों को भुगतना पड़ता है। हरियाणा पहले से ही जब जल संकट के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में दिल्ली को अतिरिक्त पानी दे पाना कतई संभव नहीं है। हरियाणा के कई इलाके पानी की कमी से जूझ रहे हैं। प्रदेशवासियों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास प्रदेश सरकार अपने स्तर पर कर रही है, लेकिन दिल्ली, पंजाब जैसे राज्यों को हरियाणा के लोगों की पीड़ा को भी समझना होगा। हरियाणा के कुल 7287 गांवों में से 3041 गांव पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से 1948 गांवों में तो समस्या काफी गंभीर हो गई है।
यहां पानी को लेकर लोग काफी परेशान हैं। हमारे प्रदेश के जल का एक बहुत बड़ा हिस्सा सीवेज और औद्योगिक कचरे के रूप में प्रदूषित हो जाता है। हमारे प्रदेश के नीति-निर्धारक यदि एक ऐसा तंत्र विकसित करें कि औद्योगिक कचरे और सीवेज के पानी को शोधित करके उन्हें दोबारा उपयोग के लायक बनाया जा सके, तो स्थितियां थोड़ी बेहतर हो सकती हैं। यही विधि दिल्ली और अन्य प्रदेशों को भी अपनानी होगी, तभी पेयजल संकट को दूर किया जा सकता है।
-संजय मग्गू
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