मां किसी भी देश, धर्म या जाति की हो, महान ही होती है। मां के लिए दुनिया की किसी भी भाषा में जो शब्द है, वह उस भाषा का सबसे पवित्र शब्द होता है। इन दिनों दक्षिण एशिया के दो देशों की महान माएं चर्चा में हैं। वैसे तो इन दोनों माओं के बेटों ने भी कम कमाल नहीं किया है, लेकिन इन बेटों से कहीं आगे बढ़कर उनकी माओं ने पूरी दुनिया को यह बता दिया है कि प्रेम ही दुनिया का सबसे बड़ा सच है, नफरत नहीं। वह दोनों माएं हैं ओलंपिक में जेवलिन थ्रो में रजत पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा की मांग सरोज देवी और स्वर्ण पदक जीतने वाले अरशद नदीम की मां रजिया परवीन। इन दोनों माओं ने अरशद नदीम और नीरज चोपड़ा को अपना बेटा, दोनों को एक दूसरे का दोस्त और भाई बताकर दोनों देशों के बीच की खाई को पाटने की जो कोशिश की है, वह बेमिसाल है। पूरी दुनिया यह जानती है कि पाकिस्तान का उदय एक राजनीतिक नफरत का परिणाम था।
भारत-पाक बंटवारे में आम जनता की कोई भागीदारी नहीं थी। कुछ सत्ता लोलुप राजनेताओं और धर्म या मजहब के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाने वाले चंद ठेकेदारों की नफरत की वजह से 14-15 अगस्त 1947 को एक की जगह दो देश अस्तित्व में आए थे। इस नफरत की आग को पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों ने बुझाने की जगह समय-समय पर हवा दी। भारत विरोधी माहौल पैदा करके सत्ता हथियाते रहे और अपने देश को यही बताने की कोशिश करते रहे कि उनकी बुरी हालत के लिए भारत जिम्मेदार है। लेकिन नागरिक चाहे भारत के हों या पाकिस्तान के, श्रीलंका के हों या बांग्लादेश के, कभी एक दूसरे का बुरा नहीं चाहते हैं।
धर्म और मजहब के ठेकेदार, सत्ता हथियाने की होड़ में लगे राजनेता जनता में विष वमन करते हैं। आज बांग्लादेश में जो कुछ भी हो रहा है, हिंदुओं, सिख और ईसाइयों पर जो हमले हो रहे हैं, वह कोई लाख कहे कि वहां की आम जनता ऐसा कर रही है, तो भी विश्वास नहीं होगा। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ जो अत्याचार हो रहा है, वह एक उन्मादी भीड़ कर रही है। उन्मादी भीड़ की शक्ल में जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी के कार्यकर्ता हैं, शोहदे हैं, गुंडे हैं और सांप्रदायिक सोच रखने वाले अराजक तत्व हैं। भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता है। भीड़ जब उन्मादी हो जाती है, तो उसके रास्ते में जो भी आता है, उसको रौंदती हुई आगे बढ़ती है।
बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के गुंडे चुन-चुनकर उन लोगों पर हमला कर रहे हैं जिनको वो पसंद नहीं करते रहे हैं। मौके का फायदा उठाकर अपने विरोधियों को निपटाने का काम दोनों सांप्रदायिक संगठन कर रहे हैं। आवामी लीग के नेता-कार्यकर्ता और अल्पसंख्यक उनके निशाने पर हैं। इस उन्मादी भीड़ को नियंत्रित करने का काम सेना और पुलिस का था, लेकिन सेना और पुलिस ने तो इनके आगे हथियार ही डाल दिए हैं। हमें आम जनता और उन्मादी भीड़ में फर्क समझना होगा।
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