क्या आप जानते है, कि वामन जयंती क्यों मनाई जाती है इसका संबंध क्षीरसागर के मंथन से बताया जाता है। जिसमें हार मिलने के बाद बली को अनोखी शक्ति प्राप्त हुई थी।
ऐसे बहुत कम लोग हैं जो वामन जयंती के बारे में जानते हैं शायद आप भी उनमें से एक हो तो अगर
आपको अभी तक इस जयंती के बारे में नहीं पता था तो आज हम अपने इस लेख में आपको पूरी जानकारी देंगे मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में भगवान नारायण ने वामन का अवतार लिया था तभी से इस दिन को वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है।
वामन शब्द का अभिप्राय अंकगणित के 52 से जोड़ा जा सकता है। इस अवसर पर भगवान का पूजन 52 पेड़ और 52 तरह की दक्षिणाएं रखकर किया जाता है। भगवान वामन का भोग मिट्टी के सकोरों अर्थात बर्तन में लगाया जाता है। उसके बाद ब्राह्मण को दही, चावल, चीनी और शरबत के साथ दक्षिणा रखकर दान दिया जाता है।
क्या है व्रत की कथा
क्षीरसागर के मंथन के समय सुरों के हाथ अमृत लगने से असुरों ने देवताओं पर हमला कर दिया था। जिसमें दैत्यराज बलि ने हार के बाद गुरु शुक्राचार्य की शरण ली थी जिसके बाद बलि ने तीनों लोकों को जीतकर स्वर्ग
अपने नाम कर लिया था। बलि के स्वर्ग का अधिपति बनने के बाद असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने उसे शतकेतु बनाने के उद्देश्य से अश्वमेध यज्ञ कराना शुरू किया जिसके बाद भगवान विष्णु वामन ब्रह्मचारी के रूप में अवतरित हुए थे। इस पर सभी देवता प्रसन्न हुए और पुनः देवलोक में रहने लगे।