चार-चार बार मध्य प्रदेश जैसे सूबे में मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज सिंह चौहान हों या दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे या तीन बार केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके प्रह्लाद पटेल हों या कैलाश विजय वर्गीय सरीखे कद्दावर बीजेपी नेता। इन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आज उन्हें यह दिन देखना पड़ेगा। उन्हें प्रदेश की राजनीति से जबरदस्ती खारिज कर दिया जाएगा।
देश की सियासत में सात दशकों का इतिहास इस बात का गवाह है कि नेता का सियासी अनुभव और वरिष्ठता जितना अधिक रहा है सियासत में उसका भविष्य उतना ही उज्ज्वल माना जाता रहा है। लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से प्रभावित सियासत ने इन सारे स्थापित मान्यताओं को एक तरह से जमींदोज कर दिया है। अब नई मान्यताएं गढ़ी जा रही हैं। लाल कृष्ण आडवाणी सरीखे सियासत के खासकर बीजेपी के शलाका पुरुष को मार्गदर्शक मण्डल में डालकर विश्राम करने को मजबूर कर दिया गया।
उनका राजनीतिक करियर खत्म कर दिया गया। सियासत में नित नई परिभाषा गढ़ने वाली इस टीम ने सियासत को एक प्रयोगशाला बना दिया है। हर बार नए प्रयोग किए जा रहे हैं। हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने देश की हिंदी पट्टी के इन तीनों राज्यों में प्रचंड जीत हासिल की है। इस बारे में सारे चुनावी समीकरण गलत साबित हुए और भाजपा ने जीत हासिल की।
जहां मध्य प्रदेश में भाजपा ने अपनी सत्ता को बरकरार रखते हुए अपनी स्थिति को और मजबूत किया है तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सरकारें छीनी हैं। 3 दिसंबर को चुनावी परिणाम आने के बाद लगभग हफ्तेभर से ज्यादा समय लग गया मुख्यमंत्रियों के नाम तय करने में। इसके पीछे वजह बनी दावेदार नेताओ का कद। उनकी प्रदेश में लोकप्रियता और सियासी अनुभव। जबकि पार्टी हाइकमान ने इस बार यह तय किया था कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए जिम्मेदारी नए चेहरों को दिया जाए।
काबिल और जातीय समीकरण साधने वाले नए चेहरे के चयन में ही समय लगा। बागियों को मनाना भी एक मुद्दा रहा। अंतत: पार्टी ने दिग्गज इलाकाई क्षत्रपों को दरकिनार कर राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा, मध्य प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहे डॉ. मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में पार्टी के विश्वसनीय कार्यकर्ता विष्णु साव पर भरोसा जताते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी थमा दी। प्रदेश की जनता इस चुनाव से चौंक कर रह गई।
बीजेपी के इस चौंकाने वाले निर्णय के बाद सियासी गलियारे में तूफान मैच गया। लोगों ने यह सवाल पूछना शुरू कर दिया कि आखिर शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया, प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजय वरगीज सरीखे नेताओं का अब क्या होगा। मध्य प्रदेश में पार्टी को प्रचंड बहुमत दिलाने में अहम योगदान देने वाले और राज्य में चार बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर घेराबंदी कर पार्टी हाईकमान की आँखों की किरकिरी बन चुकी दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के लिए पार्टी अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने उनके कद की मुताबिक समायोजित करने की बात कही है।
आज भी लोग कयास लगा रहे तीन-तीन बार केंद्र में मंत्री रहे प्रह्लाद पटेल को जब मंत्री पद से इस्तीफा दिलाकर विधायकी लड़वाया गया तो प्रथम दृष्ट्या उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना गया लेकिन अब जबकि सब साफ हो चुका है। माना जा रहा है कि उन्हें भी कही संगठन में उचित पद दिया जा सकता है। कैलाश विजय वर्गीय भी मुख्यमंत्री की दौड़ में थे, लेकिन अब उन्हें भी संगठन में ही समायोजन का भविष्य दिख रहा है। उन्हें क्या पद दिया जाता है, यह भविष्य बताएगा। इस तरह से कुछ समय पहले तक सियासत की अर्श पर चमक रहे इन दिग्गज नेताओं को बीजेपी की प्रयोगधर्मिता ने फर्श पर भी बैठने लायक नहीं छोड़ा है। बहरहाल इसे ही भाजपा की नई सियासत कहते है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव