महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में महाराजा महा सिंह के यहां हुआ था। जब वह बच्चे थे, तभी उस इलाके में चेचक फैला और इसकी चपेट में रणजीत सिंह भी आ गए। इसकी वजह से उनकी एक आंख की रोशनी चली गई। रणजीत सिंह अभी बारह साल के ही थे कि उनके पिता की मौत हो गई जिसकी वजह से छोटी उम्र में ही रियासत का कार्यभार उनके कंधों पर आ पड़ा। महाराजा रणजीत सिंह ने बड़ी कुशलता से शासन का कार्यभार संभाला। उन्होंने पूरे पंजाब को एकजुट करके खालसा राज्य की स्थापना की और जिंदगी भर अफगानों और अंग्रेजों से लड़ते रहे। उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ीं और विजय पाई। एक बार की बात है।
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की राजधानी लाहौर थी। एक दिन महाराजा रणजीत सिंह के पास उनका एक गुप्तचर आया और उसने बताया कि सरहदी सूबा पेशावर में कबीलाई लुटेरों का एक दल घुस आया है और लूटपाट मचा रहा है। रणजीत सिंह ने तुरंत पेशावर के सेनापति को बुलाया और उनसे पूछा कि आपने मुकाबला क्यों नहीं किया? पेशावर को छोड़ने के पीछे कारण क्या था? तब सेनापति ने कहा कि पेशावर में सिर्फ डेढ़ सौ सैनिक थे और कबीलाई लुटेरों की संख्या डेढ़ हजार थी। ऐसे में सैनिकों का लड़ने का साहस नहीं हुआ।
महाराजा ने तत्काल डेढ़ सौ सैनिकों की टुकड़ी को लेकर पेशावर में लुटेरों के दल पर हमला किया। सैनिक बड़ी बहादुरी से लड़े और उन्होंने लुटेरों को खदेड़ दिया। लौटने पर महाराजा ने उस सेनापति से पूछा कि डेढ़ सौ सैनिकों से ही कबीलाई लुटेरे क्यों हार गए। इस पर सेनापति ने कहा कि आपकी बहादुरी की वजह से। तब महाराजा ने कहा कि यह सबकी बहादुरी और जोश की वजह से लुटेरे हारे हैं। सब सैनिकों की एकता और साहस ही लुटेरों के हारने का कारण है।
-अशोक मिश्र