हमें धर्म संग्रह करने के लिए मानव योनि मिली है। धर्म ही इंसान के साथ जाता है। एक व्यक्ति का लोक और परलोक अधर्म से ही बिगड़ते है । हमे अपने जीवन में धर्म का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए । उक्त प्रवचन महेन्द्रगढ़ की बाबा जयरामदास धर्मशाला में देर सायं तक चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन स्वामी श्री राम प्रपन्नाचार्य महाराज आचार्य कुटी वृंदावन धाम ने व्यक्त किये।
उन्होंने कथा के दौरान बच्चों के लिए उनके माता-पिता को सीख देते हुये कहा कि आजकल छोटे बच्चों व युवाओं को बिगाडऩे में मोबाइल का अहम योगदान है। इस लिए बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिये । उन्होंने बताया कि मोबाइल के कारण बच्चे अब एकांतवासी होने लग गए है , इससे घर टूटने तक की मुसीबत आ खड़ी होती है। इसका मुख्य अहम कारण मोबाइल फोन ही बन रहा है । स्वामी जी ने उपस्थित श्रद्घालुओं को बताया कि वे अपने बच्चों को संस्कारी बनाने पर जोर दें। उन्होंने यह भी बताया कि जिस घर में माता-पिता, दादा-दादी, भाई बहनों के बीच आपसी प्रेम नहीं होता वह घर, घर नहीं होता।
परिवार में आपसी प्रेम होना अत्यंत जरूरी है। उन्होंने कहा कि जहां प्रेम होता है वहां सौहार्द का वातावरण हमेश बना रहता है वही घर स्वर्ग होता और उधर ही मॉं लक्ष्मी का भी वास होता है। स्वामी जी ने आज की कथा में नारद जी के कुंति स्थिति , पूर्व जन्म , कलयुग , भीष्म स्थिति , के दिए हुए पांच सिद्घांत की भी व्याख्या विस्तार में की गई है । इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो. रामबिलास शर्मा थे लेकिन उन्हें अचानक जरूरी कार्य होने से दिल्ली जाना पड़ा और अपनी जगह अपने भतिजे नवीन शर्माकों भेजा । नवीन शर्मा ने महाराज श्री से आशीर्वाद प्राप्त किया और समिति को 21 हजार रूपयें की सहायता राशि प्रदान की । इस अवसर पर सुधीर जी दीवान मुख्य रूप से उपस्थित थे जिन्होंने गुरू महाराज की प्रशसा हुई । अनेकों लोग इस अवसर पर उपस्थित हुए ।