ईश्वर चंद्र विद्यासागर बंगाल के नवजागरण काल के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वह महान दार्शनिक, शिक्षक, लेखक और पत्रकार थे। उन्हें संस्कृत भाषा और दर्शन पर विशेष अधिकार था। यही वजह है कि जब वह संस्कृत कालेज में पढ़ रहे थे, तभी उन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान की गई थी। उनका जन्म मेदिनीपुर जिले के वीर सिंह गांव में 26 सितंबर 1820 में हुआ था। वैसे उनका बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंध्योपाध्याय था। बहुत गरीबी में पले बढ़े होने के कारण उनको बचपन से ही अपना काम खुद करने की आदत थी। वह बाल विवाह के प्रबल विरोधी थे।
उन्होंने बंगाली समाज में बुरा समझे जाने वाले विधवा पुनर्विवाह के प्रति जनमत तैयार किया था। उनके ही प्रयास से 1865 में विधवा पुनर्विवाह कानून पास हुआ। वह स्त्री शिक्षा के बहुत बड़े हिमायती थे। उनके ही प्रयास से बंगाल में लड़कियों के लिए कई स्कूल और कालेज खोले गए थे। एक बार की है। कलकत्ता रेलवे स्टेशन पर गाड़ी से उतरकर एक युवक कुली-कुली चिल्लाने लगा। उसके पास सामान कोई बहुत ज्यादा नहीं था। वह खुद भी उसे उठाकर ले जा सकता था। तभी एक सीधे-सादे सज्जन उसके पास पहुंचे और उसका सामान उठा लिया। यह ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे। उन्होंने युवक से पूछा-कहां जाना है? युवक ने अपने कालेज का नाम बताया।
विद्यासागर ने उसका सामान कालेज तक पहुंचा दिया। रेलवे स्टेशन से कालेज कोई ज्यादा दूर नहीं था। उस युवक ने विद्यासागर को पारिश्रमिक देना चाहा, लेकिन उन्होंने मनाकर दिया। अगले दिन जब प्रार्थना सभा में वह युवक पहुंचा, तो उसने देखा कि कल उसका सामान लाने वाले सज्जन ही कालेज के प्राचार्य हैं। वह विद्यासागर के पास पहुंचा और उनके पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा। विद्यासागर ने उसे माफ करते हुए अपना काम खुद करने की सलाह दी।
-अशोक मिश्र