जब भी हमारे देश में कोई अपराध होता है और अपराधी को पकड़ने में थोड़ा विलंब होता है, तो लोग पुलिस को कोसने लगते हैं। न जाने क्या क्या कहने लगते हैं। लेकिन जब यही पुलिस अच्छा काम करती है, तो उसकी तनिक भी तारीफ करने की जहमत कोई नहीं उठाता है। अरे भाई, जब आप पुलिस कर्मियों की अकर्मण्यता और नकारेपन को लेकर रोष प्रकट कर सकते हैं, तो जब वे प्रशंसनीय कार्य करते हैं, तो उनका उत्साहवर्धन क्यों नहीं करते हैं। जो व्यक्ति निंदा करने का हक रखता है, उसे प्रशंसा करने का भी दायित्व समझना चाहिए। पलवल जिले के कैंप थाना क्षेत्र में बाइक सवार दो युवकों ने एक युवती से न केवल अपमानजनक व्यवहार किया, बल्कि मारपीट भी की।
बाइक सवारों ने जान बूझकर युवती को पीछे से टक्कर मारी। विरोध करने पर युवकों ने बड़ी दबंगई से युवती के साथ बदतमीजी की और मारपीट की। इसी बीच किसी ने इस घटना की वीडियो बना ली और उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। जिस व्यक्ति ने वीडियो बनाया उसकी मानसिकता देखिए। उसने बदतमीजी और मारपीट के समय युवती की मदद करने, उसे बचाने की कोशिश करने की जगह वीडियो बनाना ज्यादा जरूरी समझा। हमारे देश में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जब किसी किस्म का हादसा या कत्ल की वारदात होती है, तो लोग पीड़ित को बचाने, उसे अस्तपाल पहुंचाने की जगह वीडियो बनाने रहते हैं। यह नए किस्म की संवेदनहीनता है। लेकिन पलवल के कैंप थाना क्षेत्र में हुई युवती से बदसलूकी की वीडियो किसी तरह एसपी पलवल चंद्र मोहन आईपीएस के पास पहुंची, तो उन्होंने स्वत: संज्ञान लिया।
उन्होंने अपने अधीनस्थ पुलिस कर्मियों को बुलाकर कहा कि मुझे तीन घंटे के अंदर ये दोनों युवक पुलिस कस्टडी में चाहिए। नतीजा यह हुआ कि तीन घंटे के अंदर ही युवती की पहचान हुई। युवती को थाने बुलाकर उससे युवकों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया और एक आरोपी जसवंत को गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरा फरार है, लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। आज नहीं तो कल वह भी पकड़ा ही जाएगा। इस मामले में एसपी पलवल चंद्रमोहन की संवेदनशीलता, कर्तव्य परायणता की मुक्त कंठ से प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने युवती को न्याय दिलाने के लिए स्वत: कदम उठाया। देश को ऐसे ही आईपीएस अधिकारियों की जरूरत है।
वैसे भी पुलिस का फुल फार्म पब्लिक आफिसर फॉर लीगल इन्वेस्टिंगेशन एंड क्रिमिनल इमर्जेंसीज होता हो, लेकिन पुलिस का फुल फार्म आम जनता की निगाह में पोलाइट (नम्र), आब्जेक्टिव (वस्तुनिष्ठ), लायल (आस्थावान), इंटेलिजेंट (चतुर), करेजियस (साहसी) और इनर्जेटिक (ऊर्जावान) ही होता है। असल में हमारे सामने दिक्कत तब होती है, जब हम पुलिस को सुपर ह्यूमन मान लेते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि इसी समाज का एक पुलिस कर्मी भी होते हैं। उनमें भी वे दुगुर्ण या सद्गुण हो सकते हैं जो हमारे समाज में व्याप्त हैं। जब वे गलत करें, तो उनकी आलोचना में कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए, लेकिन जब पुलिस अपने काम से दिल जीत लें, तो मुक्तकंठ से प्रशंसा करने में भी कोताही नहीं बरतनी चाहिए। ऐसे कर्मियों को सैल्यूट करना चाहिए।
-संजय मग्गू