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पुराने दोस्तों से दोबारा जुड़ने में झिझक कैसी?

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दुनिया भर में किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि सामाजिक संबंध मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण होते हैं। सामाजिक संबंधों का दायरा जितना बड़ा होता है, वह आदमी मानसिक और शारीरिक रूप से ज्यादा स्वस्थ रहता है। ऐसे में किया क्या जाए? इसका सबसे आसान तरीका है कि उन लोगों की खोज की जाए जिनके साथ रहने पर अधिक सहज महसूस होता है। स्वाभाविक है कि ऐसा रिश्ता सिर्फ हम उम्र चचेरे, फुफेरे, ममेरे भाई-बहनों या फिर दोस्तों के साथ होता है। अगर इन लोगों से बात किए हुए एक लंबा अरसा बीत चुका है, तो जरूरत इन संबंधों को पुनर्जीवित करने की है। असल में पुराने पड़ चुके संबंधों को दोबारा कायम करने को लेकर संकोच सुदामा को भी था और आज के लोगों में भी है।

सुदामा श्रीकृष्ण के पास सिर्फ इसलिए नहीं जाना चाहते थे कि एक तो श्रीकृष्ण राजा थे, गुरुकुल के बाद मुलाकात किए हुए एक लंबा अरसा बीत चुका था। ऐसे में श्रीकृष्ण उनके बारे में क्या सोचेंगे, यह दुविधा उनके मन में थी। जिस दोस्त से बीस-पच्चीस साल हो गए, बातचीत किए, वह क्या सोचेगा? उसके पास बात करने के लिए समय होगा या नहीं? अगर उसका स्टेटस ऊंचा हुआ तो इसका कोई दूसरा मतलब तो नहीं निकालेगा। यदि कोई अपने बचपन के साथी के साथ दशकों बाद भी संपर्क करता है तो वही होगा, जो श्रीकृष्ण के समय हुआ था। मिलने पर श्रीकृष्ण सुदामा से खूब उलाहना देते हैं, इतनी परेशानी में रहे, लेकिन मिलने नहीं आए। अपना हालचाल तक नहीं भेजा, किसी से भी संदेशा तक नहीं भिजवाया। लेकिन जब एक बार मन की गांठें खुलीं, तो फिर दोनों का प्रेम निर्मल जल की तरह प्रवाहित होने लगा। कमोबेस अब भी यही होगा।

हो सकता है कि जिस आत्मीय से बात करना चाह रहे हों, वह व्यस्त हो। तत्काल आपसे संपर्क न कर पाए, आपके संदेश का तुरंत जवाब न दे, लेकिन यदि जवाब आया, तो पुराने दिनों की यादों का पिटारा खुले बिना नहीं रहेगा। दोबारा संपर्क होने पर जरूरत इसी बात की है कि किसी भी तरह यादों का पिटारा खुले और बचपन से लेकर जवानी आने तक उपजा प्रेम बाहर आए। अपने परिजनों, आत्मीय जनों से बातचीत करके, उनके सुख-दुख जानकर मन कभी दुखी होता है, तो कभी उल्लसित। मन यदि उल्लसित हो तो फिर जीवन के तमाम तनावों को दूर होते कितनी देर लगेगी।

भूले-बिसरे दोस्त समाज से जुड़ने में जितनी मदद कर सकते हैं, उतना कोई नहीं कर सकता है। दोस्त निस्वार्थ होगा, गलत करने पर दो चार बातें सुनाएगा, पीठ पर एक धौल जमाएगा, लेकिन अपनेपन की जो सुगंध बिखेरेगा, वह अनमोल थाती जैसा होगा। यह खुशी प्रदान करेगा। इसमें उम्र कहीं भी बाधक नहीं है। आर्थिक और सामाजिक स्थिति कहीं से भी बाधा नहीं डालती है। जब दोस्ती हुई थी, तब सामाजिक स्थिति बाधक नहीं थी, तो अब क्या होगी? तो फिर देर किस बात की? उठाइए मोबाइल, खोजिए पुरानी डायरी जिसमें दोस्तों के मोबाइल या लैंड लाइन नंबर लिखे हैं और कहिए-हल्लो! मैं तुम्हारा दोस्त बोल रहा हूँ।

-संजय मग्गू

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