पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति को महत्वपूर्ण माना जाता है। पौष माह में जब सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है तो उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024 को है। यह सूर्य और शनि के मिलन का दिन है। कहा जाता है कि इस दिन काले तिलों से सूर्य की पूजा करने से व्यक्ति को शनि दोष से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य देव और शनि की कथा पढ़ने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
शनि देव होंगे प्रसन्न
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए अपने वजन के अनुसार तेल चढ़ा सकते हैं अर्थात अगर हमारा 56 किलो वजन हो तो हमें 56 ग्राम तेल भगवान को चढ़ा सकते हैं जिससे शनिदेव अत्यंत प्रसन्न होते हैं तथा मनोवांछित फल देते हैं।
- इस दिन शनि चालीसा का पाठ करें एवं भगवान को काले तिल के लड्डू का भोग लगाएं।
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए किसी गरीब या भिखारी को लोहे का दान करें एवं काले वस्त्र एवं काला कम्बल भेंट करने से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं।
- शनि देव के सामने आटे के सात दीपक प्रज्जवलित कर नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें।
मकर संक्रांति की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य देव और शनि देव पिता-पुत्र जरूर थे, लेकिन दोनों के रिश्ते में खटास आ गई थी। इसका कारण सूर्यदेव का शनि की माता छाया के प्रति व्यवहार था। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो सूर्य ने शनि का काला रंग देखकर कहा कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने शनि को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार नहीं किया और इसके बाद सूर्य देव ने शनि देव और उनकी माता छाया को अलग कर दिया। शनिदेव और माता छाया कुंभ नामक घर में रहने लगे, लेकिन सूर्य के इस व्यवहार से आहत होकर माता छाया ने उन्हें कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया।
सूर्य देव को कुष्ठ रोग का कष्ट हुआ
अपने पिता को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर सूर्य पुत्र यमराज बहुत दुखी हुए। यमराज सूर्य की पहली पत्नी संज्ञा की संतान हैं। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया। जब सूर्य देव पूर्णतः स्वस्थ हो गये तो उन्होंने अपनी दृष्टि पूर्णतः कुम्भ राशि पर केन्द्रित की। इससे शनिदेव का घर कुंभ जलकर राख हो गया। इसके बाद शनि और उनकी मां छाया को कष्टों का सामना करना पड़ रहा था।
पुत्र शनि ने काले तिलों से सूर्य का स्वागत किया
यमराज अपनी सौतेली मां और भाई शनि की दुर्दशा देखकर पिता सूर्य से उनके कल्याण के लिए उन दोनों को माफ करने का अनुरोध करते हैं। इसके बाद सूर्य देव शनि से मिलने जाते हैं। जब शनि देव अपने पिता सूर्य देव को आते देखते हैं तो वे अपने जले हुए घर की ओर देखते हैं। वे घर के अंदर गए, वहां एक बर्तन में कुछ तिल रखे हुए थे। शनिदेव अपने पिता का स्वागत इन्हीं तिलों से करते हैं
इस प्रकार शनिदेव को ‘मकर’ घर प्राप्त हुआ
शनि के इस व्यवहार से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और शनि देव को दूसरा घर देते हैं, जिसका नाम मकर है। इससे प्रसन्न होकर शनिदेव कहते हैं कि जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति पर सूर्य की पूजा करेगा उसे शनि की महादशा से मुक्ति मिलेगी और उसका घर धन-धान्य से भर जाएगा। इसलिए जब सूर्य देव अपने पुत्र के प्रथम भाव यानी मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।