सोनम लववंशी
भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता और उदारता के लिए विश्वभर में जाना जाता है। ये दानवीर दधीचि की तपस्थली और महादानी कर्ण की भूमि रही है। सदियां बीतने से यहां की परम्पराएं नहीं बदलीं। आज उसी परम्परा को देश के नए दानवीर आगे बढ़ा रहे हैं। इसका प्रमाण हाल ही में जारी एडेलगिव हुरुन इंडिया फिलैनथपी लिस्ट 2024 में मिलता है जिसमें भारतीय दानवीरों की बढ़ती भागीदारी और उनके योगदान की रिपोर्ट जारी की गई है। इस सूची में शिव नादर भारत के सबसे बड़े दानदाता के रूप में उभरे हैं। एचसीएल टेक्नोलॉजीज के संस्थापक शिव नादर ने 2024 में प्रतिदिन छह करोड़ रुपये से अधिक का दान दिया, जो कुल 2,222 करोड़ रुपये तक पहुंचा। उनका यह योगदान मुख्य रूप से शिक्षा क्षेत्र में केंद्रित है। शिव नादर फाउंडेशन ने लाखों छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए कई पहल की है। उनके प्रयास समाज में समानता और नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
भारत के युवाओं की परोपकार क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी सराहनीय रही है। इस सूची में दानदाताओं की औसत आयु 50 वर्ष है, जो पिछले वर्षों के मुकाबले कम हुई है। यह इसका संकेत है कि युवा उद्यमी और व्यवसायी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए सक्रिय योगदान दे रहे हैं। इसमें शिक्षा, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और वित्तीय साक्षरता जैसे विषय शामिल हैं। शिक्षा क्षेत्र में सबसे अधिक 32 प्रतिशत का दान प्राप्त हुआ है, जो यह दर्शाता है कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण पहल है। जबकि पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में भी दानदाताओं ने दिल खोलकर दान दिया है, जो कि सतत विकास की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
इस सूची में फार्मास्युटिकल उद्योग का योगदान 16 प्रतिशत रहा, जो अन्य उद्योगों की तुलना में सबसे अधिक है। यह दिखाता है कि इस उद्योग के प्रमुख व्यवसायी न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर रहे हैं, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों को बेहतर जीवन प्रदान करने में भी सहयोग दे रहे हैं। भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने कॉपोर्रेट दान को कानून में शामिल किया है। हुरुन इंडिया की रिपोर्ट की मानें तो 18 दानदाताओं ने 100 करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक दान दिया, 30 दानदाताओं ने 50 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान किया, जबकि 61 दानदाताओं ने 20 करोड़ रुपये से अधिक का दान दिया। महिला दानदाता की बात करें तो रोहिणी नीलकणी 154 करोड़ रुपये दान किए हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि भारत में परोपकार केवल एक नैतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक आंदोलन बनता जा रहा है।
साल 2024 की परोपकार सूची में 96 नए नाम जुड़े हैं। इन नए दानदाताओं ने 1556 करोड़ रुपये का दान दिया है। इससे कुल परोपकारियों की संख्या 203 हो गई है। सभी ने मिलकर 8783 करोड़ रुपये दान किए हैं, जो पिछले सालों के मुकाबले 55 प्रतिशत अधिक है। जेरोधा के निखिल कामत महज 38 साल की उम्र में 120 करोड़ का योगदान देकर सबसे युवा परोपकारी बने हैं। वहीं, इंडो एमआईएम टेक्नोलॉजीज के चेयरमैन कृष्णा चिवुकुला ने 228 करोड़ दान कर नए दानदाताओं में सबसे अधिक उदारता दिखाई। उन्होंने यह दान अपने पूर्व शिक्षण संस्थान, आईआईटी मद्रास को दिया। परोपकार का उद्देश्य न केवल वित्तीय सहायता प्रदान करना है, बल्कि एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो समावेशी और समानता पर आधारित हो। अजीम प्रेमजी, राधाकिशन दमानी और अन्य प्रमुख दानदाताओं ने इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका योगदान न केवल आर्थिक असमानता को कम करता है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने में भी मदद करता है।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)
युवा शक्ति बढ़ा रही भारत की परोपकारी परंपरा!
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