भारत सरकार ने राइट टू रिपेयर (Right to Repair) पोर्टल की शुरुआत की है। लोगों की आम समझ है कि इस पोर्टल से हम कुछ भी रिपेयर करा सकते हैं। यह कुछ हद तक सत्य भी है। पोर्टल पर कंपनियों की लिस्टिंग की गई है। सुविधानुसार कंपनी चुन कर आप राइट टू रिपेयर का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, अभी भी लोगों के मन में कई सवाल हैं। तो आइए आज इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं…
Right to Repair : क्या अधिकार देगा यह कानून
Right to Repair एक ऐसे अधिकार या कानून की बात करता है जिसमें ग्राहक अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की मरम्मत खुद से कर सकें।
जब ग्राहक कोई उत्पाद खरीदता है, तो उस पर उसका पूरा अधिकार होता है। इसके मरम्मत के लिए कंपनियों द्वारा सस्ते दर पर पुर्जे उपलब्ध कराने की बात की जा रही है। भारत में इस तरह के कानून बनाने के लिए एक समिति गठित की गई है।
Right to Repair : कहां से आया यह विचार
‘राइट-टू-रिपेयर’ का विचार मूल रूप से अमेरिका से आया है। यहां ‘मोटर व्हीकल ओनर्स राइट-टू-रिपेयर एक्ट, 2012’ किसी भी व्यक्ति को वाहनों की मरम्मत करने में सक्षम बनाने के लिए वाहन निर्माताओं के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज और जानकारी प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।
क्या है राइट टू रिपेयर पोर्टल
आज के समय में सभी के पास गैजेट है। स्मार्टफोन, ईयरफोन, टैबलेट, स्मार्ट वॉच आदि। यह सुविधाजनक तो है। लेकिन, एक बार खराब हो जाए तो खर्चीला भी है। रिपेयरिंग को आसान बनाने के लिए ही राइट टू रिपेयर पोर्टल लाया गया।
सरकार का उद्देश्य है कि एक ही जगह पर आपको सभी तरह की कंपनियों की सुविधा मिल जाए। इसके लिए सरकार ने एक पोर्टल भी लॉन्च किया है। इसके लिए आपको https://righttorepairindia.gov.in/index.php जाना होगा।
क्या है Right to Repair पोर्टल के फायदे
इस ऑनलाइन पोर्टल पर आपको सेल्फ-रिपेयर मैन्युअल और ऑथराइज्ड थर्ड पार्टी रिपेयर प्रोवाइडर्स की डिटेल्स मिल जाएगी। इसकी मदद से यूजर्स लोकल शॉप पर भी अपने लैपटॉप, स्मार्टफोन या फिर दूसरे इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंस को ठीक करा सकते हैं।
इससे उनकी वारंटी पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस पोर्टल पर चार सेक्टर- फार्मिंग इक्विपमेंट, मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल और ऑटोमोबाइल इक्विपमेंट मिलते हैं।
कैसे उठा सकते हैं लाभ
Right to Repair पोर्टल पर आपको कई सर्विसेस का ऑप्शन मिलता है। इसमें प्रोडक्ट रिपेयर और मेंटेनेंस, पार्ट रिप्लेसमेंट और वारंटी की जानकारी मौजूद होती है।
आपको इन डिटेल्स को एक्सेस कर सकते हैं। यूजर्स को सबसे पहले राइट टू रिपेयर की आधिकारिक वेबसाइट https://righttorepairindia.gov.in/index.php पर जाना होगा। यहां आपको तमाम कंपनियों का ऑप्शन मिल जाएगा। यहां से आप डिटेल्स को एक्सेस कर सकते हैं।
Right to Repair नियम बनाने की हो रही मांग
ग्राहक अब राइट टू रिपेयर नियम बनाने की भी मांग कर रहे हैं। इससे वे कंपनियों के महंगे पुर्जों के खर्चे से बच जाएंगे। इस नियम के तहत कंपनियों को ऐसे प्रोडक्ट बनाने होंगे, जिन्हें जरूरत पड़ने पर यूजर्स खुद रिपेयर कर सकें। इससे यूजर्स का सर्विस सेंटर आने-जाने और कंपनियों के महंगे पुर्जों खरीदने का खर्च बचेगा।
कई देश Right to Repair को कानूनी तौर पर लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इस अधिकार को हासिल करने के लिए कई समूहों ने भी काफी संघर्ष किया है। भारत में भी नियम बनाने के लिए समिति गठित की गई है।
पर्यावरण को भी होगा फायदा
इस नियम के बन जाने से पर्यावरण को भी फायदा होगा। रिपेयरिंग महंगी और जटिल प्रक्रियो है। ऐसे में लोग अपने खराब उपकरणों को रिपेयर कराने की जगह बदलना पसंद करते हैं। इससे भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन और इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है।
Right to Repair की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे यूरोपीय संघ (EU) का अनुमान है कि समय से पहले फेंके गए डिवाइस अकेले EU की सीमा में हर साल 3.5 करोड़ मीट्रिक टन कचरा और 26 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन का कारण है।
Right to Repair से क्यों मुंह मोड़ रही थीं कंपनियां
ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, अल्फाबेट और मेटा जैसी दुनिया की दिग्गज टेक कंपनियां इस नियम के विरोध में थीं। इनका कहना था कि राइट-टू-रिपेयर उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन होगा।
यह भी तर्क दिया गया कि ग्राहक अपना डिवाइस ठीक करते समय घायल हो सकते हैं। खुद से रिपेयर करने से अधिक हैकिंग होगी और मरम्मत में कोई दिक्कत होने से कंपनियों की प्रतिष्ठा को भी नुकसान होगा।
समर्थन करने वालों ने दिया यह तर्क
इस नियम का समर्थन करने वालों का कहना है कि कंपनियों के तर्क निराधार हैं। उनके द्वारा Right to Repair का विरोध करने की असली वजह उनके रिपेयरिंग बिजनेस को होने वाला घाटा है।
हालांकि, कंपनियों के Right to Repair के विरोध के समर्थन में बहुत कम सबूत मिले। इसके बाद कंपनियों ने इस मुद्दे पर अपना रुख बदलना शुरू कर दिया है। ऐपल, सैमसंग, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट आदि ने अपने-अपने सेल्फ-रिपेयरिंग कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं।
कैलिफोर्निया का बिल क्यों है सबसे मजबूत
राइट-टू-रिपेयर मामले में अभी तक कैलिफोर्निया के बिल को सबसे मजबूत माना जाता है। इस कानून का उद्देश्य खराब सामानों को फेंकने की प्रक्रिया को कम करना है।
कैलिफोर्निया के बिल के तहत लगभग 4,000 रुपये से 8,000 रुपये के बीच लागत वाले उपकरणों के लिए 3 साल तक स्पेयर पार्ट्स और जानकारी उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
इसके अलावा 8,000 रुपये से अधिक लागत वाले उपकरणों के लिए 7 साल तक सपोर्ट देना अनिवार्य है।