इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने राज्यभर के प्राथमिक विद्यालयों के जूनियर शिक्षकों को बड़ी राहत दी है। अदालत ने जून 2024 में लागू की गई तबादला नीति को रद्द कर दिया, जो शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने के लिए बनाई गई थी। अदालत ने 26 जून 2024 को जारी सरकारी आदेश के कुछ प्रावधानों को “मनमाना और भेदभावपूर्ण” करार दिया और इन्हें रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति मनीष माथुर की पीठ ने जूनियर शिक्षकों द्वारा दायर 21 रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। याचिकाओं में कहा गया था कि तबादला नीति शिक्षा के अधिकार और समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि इस नीति के अनुसार, जब कोई नया शिक्षक किसी स्कूल में नियुक्त होता है, तो उसे ही शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने के लिए स्थानांतरित किया जाता है, और ऐसा होने से उसे फिर से स्थानांतरित किया जाता है, जबकि पुराने शिक्षक अपनी जगह पर बने रहते हैं।
राज्य सरकार ने इस नीति को आवश्यक बताते हुए इसका विरोध किया और कहा कि यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत जरूरी है। लेकिन अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद फैसला दिया कि तबादला नीति में कोई उचित कारण नहीं है और यह भेदभावपूर्ण है। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ बताया।