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COP-29: एजेंडे में कार्बन सीमा टैक्स शामिल करने पर विवाद

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संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP-29) की शुरुआत सोमवार को काफी विवाद के साथ हुई। इस विवाद का कारण था, यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित कार्बन सीमा कर (Carbon Border Adjustment Mechanism, CBAM) जैसे एकतरफा व्यापार उपायों को जलवायु वार्ता के एजेंडे में शामिल करना। इस कदम पर चीन, भारत और अन्य विकासशील देशों ने तीखा विरोध जताया, जिसके चलते सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत में देरी हुई। यह मामला विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि इस बार जलवायु सम्मेलन का केंद्रीय मुद्दा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को वित्तीय मदद का नया लक्ष्य निर्धारित करना था, और इस पर सहमति बनाने के लिए देशों के पास समय बेहद सीमित था।

एजेंडे को लेकर विवाद और देरी

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलनों में एजेंडा विवाद आम बात है, लेकिन इस बार यह विवाद विशेष रूप से संवेदनशील था। अजरबैजान ने सम्मेलन की शुरुआत करते हुए सभी देशों से नए जलवायु वित्त लक्ष्य पर सहमति बनाने के लिए बकाया मुद्दों को जल्द हल करने का आह्वान किया। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु प्रमुख साइमन स्टिल ने इस पर जोर दिया कि यह हर देश के हित में है। इसके बाद, एजेंडे पर चर्चा के लिए कार्यवाही को निलंबित कर दिया गया।

कार्बन सीमा कर: यूरोपीय संघ की पहल और विकासशील देशों की चिंता

यूरोपीय संघ ने एकतरफा व्यापार उपायों, खासकर कार्बन सीमा करों की बात की है, जिसे कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) कहा जाता है। यह प्रस्ताव खासकर उन देशों के लिए है जो यूरोपीय संघ में ऊर्जा-गहन उत्पादों का निर्यात करते हैं, जैसे कि लोहा, इस्पात, सीमेंट, उर्वरक और एल्यूमीनियम। यूरोपीय संघ का तर्क है कि यह कदम घरेलू स्तर पर बने सामान के लिए समान अवसर पैदा करेगा और आयातित सामान से उत्सर्जन को नियंत्रित करने में मदद करेगा। इसके माध्यम से, यूरोपीय संघ का उद्देश्य अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करना है।

हालांकि, विकासशील देशों, खासकर चीन और भारत ने इस कदम पर गंभीर आपत्ति जताई। उनका कहना है कि यह कदम उनके लिए आर्थिक रूप से हानिकारक होगा। इन देशों का तर्क है कि ऐसे करों से उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचेगा और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार महंगा हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र के जलवायु नियमों के तहत किसी भी देश को अपनी उत्सर्जन कम करने की रणनीतियां दूसरों पर थोपने का अधिकार नहीं होना चाहिए। उनका आरोप है कि यूरोपीय संघ इस उपाय के माध्यम से अपने व्यापारिक हितों को साधने की कोशिश कर रहा है और विकासशील देशों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा रहा है।

विकासशील देशों की चिंता और तर्क

विकासशील देशों का मानना है कि कार्बन सीमा कर जैसे एकतरफा उपायों से उनके उद्योगों और रोजगारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, यह कदम वैश्विक व्यापार में असंतुलन पैदा कर सकता है, जिससे उनका विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होगी। इन देशों का कहना है कि उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने और विकास के लिए समय और संसाधनों की आवश्यकता है, न कि ऐसे उपायों से उनका आर्थिक विकास अवरुद्ध हो।

आखिरकार, जलवायु वित्त के लक्ष्य पर सहमति की आवश्यकता

COP-29 सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को वित्तीय मदद उपलब्ध कराने के नए लक्ष्य पर सहमति बनाना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए देशों के पास बहुत कम समय है, और इसके लिए सभी देशों को सहयोग और समझौते की आवश्यकता होगी। विकासशील देशों का कहना है कि अगर उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त वित्तीय मदद नहीं मिलती, तो वे कार्बन सीमा कर जैसे उपायों का सामना नहीं कर पाएंगे।

COP-29 सम्मेलन की शुरुआत में हुआ विवाद इस बात का संकेत है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित और विकासशील देशों के बीच सहमति और सहयोग की आवश्यकता है। कार्बन सीमा कर जैसे एकतरफा उपायों पर विकासशील देशों का विरोध यह दर्शाता है कि जलवायु वित्त और अन्य मुद्दों पर सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए समावेशी और सहमति आधारित समाधान जरूरी हैं।

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