महात्मा बुद्ध ने भारतीय दर्शन में जो महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए, उनमें से एक ‘क्षणवाद’ भी है। महात्मा बुद्ध का कहना था कि जो पल कोई व्यक्ति जी रहा होता है, वही पल उसका होता है। जो बीत गया है, वह बीत गया, अब वह दोबारा लौट नहीं सकता है। जो पल आने वाला है, उस पर व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं होता है। इसलिए मनुष्य को वर्तमान ठीक से जी लेना चाहिए। जो वर्तमान है, वही क्षण आपका है। महात्मा बुद्ध का यह क्षणवाद लोगों को सुखी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। एक बार की बात है। राजा श्रेणिक महात्मा बुद्ध से मिलने आए। उन्होंने देखा कि महात्मा बुद्ध के एक तरफ बैठे भिक्षुओं के चेहरे चमक रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पंक्ति में बैठे राजकुमारों के चेहरे मुरझाए हुए हैं। राजकुमारों को जीवन की हर सुख-सुविधा उपलब्ध थी।
उन्हें सबसे अच्छा खाना, पहनने को सर्वोत्तम कपड़े और रहने को महल मिले हुए थे। उनको मेहनत करने की जरूरत नहीं थी। उन्हें किसी भी प्रकार की चिंता भी नहीं थी, इसके बावजूद वे मुरझाए हुए थे। वहीं, कठिन दिनचर्या बिताने वाले भिक्षुओं के चेहरे पर प्रसन्नता व्याप्त थी। राजा श्रेणिक ने बहुत सोचा। इसका कारण उनकी समझ में नहीं आया।
काफी सोचने-विचारने के बाद उन्होंने महात्मा बुद्ध के सामने अपनी जिज्ञासा प्रकट कर ही दी। राजा श्रेणिक की बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराए और बोले, इन भिक्षुओं के चेहरे पर कठिन परिश्रम के बाद भी जो प्रसन्नता देख रहे हो, उसका कारण यह है कि वे हमेशा वर्तमान में ही जीते हैं। कल क्या हुआ था, यह वह भूल चुके हैं। कल क्या होगा? इसकी इन्हें चिंता नहीं होती है। यही वजह है कि इनके मन में किसी प्रकार का तनाव भी नहीं रहता है। धरती पर जो कुछ जिस रूप में है, ये उसको उसी रूप में देखते हैं।
अशोक मिश्र