समस्याओं का समाधान करने की मांग करने पर निगम द्वारा हमेशा कंगाली का रोना रोया जाता है। जनता को सुविधाएं उपलब्ध करवाने की आड़ में अधिकारियों द्वारा निगम की सम्पतियों को भी बेचा जाता है। सरकार द्वारा अरबों रुपये भेजे जाने के बावजूद शहर बदहाली का शिकार हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद नगर निगम अधिकारियों द्वारा जनता को सुविधाएं उपलब्ध करवाने की बजाए व्यर्थ के कामों में सरकारी धन का विभिन्न तरीकों से दुरूपयोग किया जा रहा है। नगर निगम की तरफ से कुछ साल पहले जन प्रतिनिधियों के आवास और दिशा सूचक एसएस बोर्ड बनवाए थे। करोड़ों रुपये की लागत से बनवाए गए बोर्ड लगने के कुछ समय बाद ही टूटने लगे थे। वहीं कुछ बोर्ड गायब होने शुरू हो गए थे। जबकि पार्षदों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद निगम इन बोर्डो को अपने कब्जे में नहीं लिया। बल्कि अब चौराहों पर पहले से ठीकठाक बोर्ड मौजूद होने के बावजूद निगम के अधिकारी फिर नए एसएस बोर्ड लगाकर सरकारी धन का दुरूपयोग किया गया हैं।
कई बार हो चुके हैं करोड़ों खर्च
जन प्रतिनिधियों के आवास और दिशा सूचक बोर्ड पहले साधारण बनवाए जाते थे। लेकिन कुछ साल पहले निगम ने एसएस (स्टेनलेस स्टील) के बोर्ड बनवाए थे। बोर्ड तीन साइजों के थे। जिनमें छोटे 28 हजार रुपये, मध्यम 45 हजार रुपये और बड़े बोर्ड 55 हजार रुपये के खरीदे थे। 55 हजार रुपये में खरीदे गए बोर्ड का बाजार भाव करीब 16 हजार रुपये था। लेकिन निगम ने करीब तीन गुणा ज्यादा कीमत देकर ठेकेदार से प्रति बोर्ड के हिसाब से खरीदा था। जबकि एसएस से बना सामान बाजार में नग से नहीं बल्कि वजन से बेचा जाता है। इससे साफ जाहिर होता है कि एसएस बोर्ड की खरीद के नाम पर बंदरबांट भी हुई होगी। इस घोटाले का खुलासा सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंगला द्वारा दायर की गई आरटीआई का जबाव नगर निगम की तरफ से मिलने के बाद हुआ था।
व्यर्थ में खर्च हुआ सरकारी धन
शहर के ज्यादातर चौराहों पर केंद्रीय मंत्री, विधायक, पार्षद और सत्ताधारी दल के वरिष्ठ नेताओं के आवास अथवा कार्यालयों का रास्ता दशार्ने वाले दिशा सूचक बोर्ड लगवाए थे। पार्षदों का कायार्काल कई महीने पहले खत्म हो चुका है। लेकिन वर्तमान मंत्री, विधायक और कई वरिष्ठ नेता अभी भी अपने पदों पर बरकरार हैं। इन सभी के आवासों की ओर जाने वाले रास्तों पर भी इनके बोर्ड ठीक हालत में हैं। इसके बावजूद नगर निगम अधिकारी द्वारा उन बोर्ड के बगल में ही फिरसे हजारों रुपये कीमत के नए एसएस बोर्ड लगवाए गए हैं। कुछ बोर्डो के फ्लैक्स जरूरी धुंधले पड़ गए हैं। लेकिन बोर्ड का फ्रेम पूरी तरह ठीक हालत में है। निगम अधिकारी चाहते तो सिर्फ मामूली कीमत खर्च कर फ्रेम में फ्लैक्स लगवा सकते थे। लेकिन उन्होंने पैसों का दुरूपयोग करते हुए बोर्ड नए बनवा दिये।
आरटीआइ से खुला था घोटाला
संजय सिंगला की एसएस बोर्ड से संबंधित आरटीआई के कुछ सवालों के जबाव निगम ने नहीं दिये थे। हालांकि जो जवाब मिला उसने निगम के अधिकारियों और ठेकेदार की मिली भगत से हुआ घोटाला उजागर कर दिया था। लेकिन संबंधित अधिकारियों और ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। करीब ढाई गुणा ज्यादा कीमत देने के बावजूद बोर्ड की गुणवता ठीक नहीं है। अनेक बोर्ड लगने के कुछ समय बाद ही टूटने लगे गए थे। कई बोर्ड में तो सिर्फ पाइप रह गया था और बोर्ड टूट गए थे। इतने कीमती बोर्ड होने के बावजूद निगम द्वारा इनकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया गया। कई स्थानों पर कुछ समय पहले तक लगे बोर्ड गायब हो चुके हैं। जबकि निगम के प्रत्येक वार्ड में जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी तैनात हैं। लेकिन वे निगम की सम्पति पर कोई ध्यान ही नहीं देते।
अधर में कई घोटालों की जांच
शहर में ऐसे कई इलाके हैं, जहां शाम ढलते ही सड़के अंधेरे में डूब जाती है। टूटी फूटी सडकों पर बरसाती पानी भर जाने और स्ट्रीट लाइटें खराब होने से लोगों का इन सडकों से गुजरना मुश्किल हो जाता है। जबकि नगर निगम एलईडी लाइटों के नाम पर करोड़ों खर्च करने के दावें करता है। पिछले दिनों हुए एलईडी लाइट घोटाले की जांच रिपोर्ट अभी तक आई नहीं है। लेकिन इसके बावजूद नगर निगम के अधिकारियों द्वारा कई जगह अनावश्यक रूप से हाई मास्क लाइटों पर लाखों रुपये खर्च किये गए हैं।