हमास और इजराइल के बीच जैसे-जैसे घमासान लड़ाई होती जा रही है, वैसे-वैसे भारत में भी धार्मिक आधार पर सोशल मीडिया और राजनीतिक दलों में बंटवारा होता जा रहा है। सोशल मीडिया इजराइल के पक्ष या विपक्ष में खड़ा हुआ नजर आ रहा है।
सवाल यह है कि ऐसा हो क्यों रहा है? इसका कारण यह है कि सात अक्टूबर को हमास ने इजराइल पर हमला किया, तो उसी दिन कई वीडियो हिंदुस्तान की सोशल मीडिया पर वायरल हुए जिसमें हमास के लड़ाके इजराइली महिलाओं, बच्चियों और पुरुषों को मारते हुए, उनका अपहरण करके खुली सड़क ले जाते समय अल्लाह हू अकबर का नारा लगाते दिख रहे थे।
हिंदुस्तान की सोशल मीडिया के लिए इतना काफी था। लोग इसी बात को लेकर ले उड़े। वैसे यह भी सच है कि हमास के हमले को किसी भी दृष्टिकोण से जायज नहीं ठहराया जा सकता है।
यह एक आतंकी कार्रवाई थी और है, आतंकियों का समूल नाश बहुत जरूरी है। लेकिन हमें यह भी याद रखना होगा कि आतंकवादी संगठन हमास पूरे फलस्तीन का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। यह एक गुट है और उस गुट के किसी भी बुरे कार्यों के लिए पूरे फलस्तीन को दोषी नहीं माना जा सकता है।
भारत ने घटना के दिन ही इजराइल का समर्थन किया। करना भी चाहिए। आतंकवाद का समर्थन कौन कर सकता है भला? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया और बताया कि वे इस आतंकी हमले के मामले में इजराइल के साथ मजबूती से खड़े हैं।
लेकिन उन्होंने फलस्तीन के बारे में तो कुछ भी बुरा नहीं कहा। वे फलस्तीन और हमास के बीच के अंतर को समझते हैं। अभी कल ही कांग्रेस की कार्यसमिति में प्रस्ताव पारित करके फलस्तीन के समर्थन में खड़े होने की बात कही गई।
कांग्रेस ने भी पीएम मोदी की तरह हमास के हमले की निंदा की। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बाकायदा ट्वीट भी किया। फिर इस मामले को धार्मिक आधार पर क्यों देखा जा रहा है? पांच राज्यों में होने वाले चुनाव को लेकर यदि ऐसा कुछ किया जा रहा है, तो भी यह निरर्थक है।
दोनों पक्ष जिस तरह इस मुद्दे को लेकर माहौल का खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, वह चिंताजनक है। इससे हमास और इजराइल पर तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन हमारे देश की सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द जरूर बिगड़ जाएगा।
भारत अब भी स्वशासन, अपनी भूमि और आत्म सम्मान के लिए लड़ रहे लाखों फलस्तीनियों के साथ खड़ा है। पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने संदेश जारी करके फलस्तीन के लिए भारत के अटूट समर्थन की प्रतिबद्धता को दोहराया था।
जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी, तब भी स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि गलतफहमी को दूर करने के लिए मैं कहना चाहता हूँ कि हम हरेक प्रश्न को गुण और अवगुण के आधार पर देखेंगे। लेकिन मध्य-पूर्व के बारे में यह स्थिति साफ है कि अरबों की जिस जमीन पर इसराइल कब्जा करके बैठा है, वो जमीन उसको खाली करनी होगी।
आजादी के बाद से भारत हमेशा फलस्तीन के साथ रहा है क्योंकि यह मामला कमजोर को दबाकर उसकी जमीन को हड़प लेने जैसा है। हां, हमास का समर्थन कोई भी नहीं करना चाहेगा। चाहिए भी नहीं।
– संजय मग्गू