देश रोज़ाना: महात्मा बुद्ध की अनन्य शिष्याओं में विशाखा का नाम पहले आता है। उसका विवाह श्रावस्ती के नगर श्रेष्ठि मिगार के पुत्र पुत्रवर्धन के साथ हुआ था। उसके मायके में उसके माता-पिता महात्मा बुद्ध के अनन्य भक्तों में थे। वह कपिलवस्तु में होने वाले प्रवचनों में अपने माता-पिता के साथ भाग लेती थी। लेकिन विवाह के बाद जब अपने ससुराल पहुंची, तो वहां का वातावरण दूसरा था। उसके ससुर और पति सिर्फ धन कमाने में लगे रहते थे। वे साधु-संतों को न तो कोई दान-दक्षिणा देते थे और न ही किसी को भोज पर बुलाते थे।
एक बार की बात है। विशाखा का ससुर भोजन कर रहा था, तभी द्वार पर एक भिक्षु आया। उसने भिक्षा मांगी तो विशाखा ने जोर से कहा कि घर में कुछ नहीं है। ससुर जी बासी खा रहे हैं। मिगार को यह बात अपमानजनक लगी। उसने विशाखा के माता-पिता को श्रावस्ती बुलाकर पंचायत बुलाई और कहा कि आपकी पुत्री और मेरी बहू ने मेरा अपमान किया है। कुल की बदनामी कराई है। मैं ऐसी बहू का परित्याग करना चाहता हूं। पंचायत ने विशाखा से कहा कि बेटी, तुम शिक्षित और धर्मशील हो, तुमने ऐसी बात क्यों कही?
विशाखा ने कहा कि मैंने सिर्फ इतना ही कहा था कि मेरे ससुर बासी खा रहे हैं। इसमें मैंने कोई गलत बात नहीं कही थी। मेरे ससुर और पति ने इस जन्म में कोई ऐसा पुण्य का काम तो किया नहीं है। इतना धन, वैभव और सुख-सुविधाएं जरूर पिछले जीवन के कर्मों का फल है। इस जन्म में न तो इन्होंने संतों को कभी भोजन कराया, न कुआं, बावड़ी, धर्मशाला, स्कूल या सराय बनवाई। जो कुछ भी है वह पिछले जन्म का है। यह सुनकर मिगार स्तब्ध रह गया। बात सच थी। उसने कहा कि आज से मेरी पुत्रवधू मेरी गुरुमाता है। इसकी इच्छानुसार ही हम सब आचरण करेंगे। अगले दिन मिगार ने बुद्ध दीक्षा ले ली।
– अशोक मिश्र